Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थापनाचार्य का मिथ्या अंडगा *学家***************************李*******本**本平 दी, इससे खिन्न होकर आप ही की मूर्ति पूजक समाज के आचार्य सागरानंद सूरिजी 'तप अने उद्यापन' नाम की पुस्तक में लिखते हैं कि
“आचार्य भगवंतो नी आराधना तेमनी मूर्ति द्वाराए जणावी नथी, वली ए वात पण ध्यानमा राखवानी छे के आचार्य महाराज नी हयाति मां अंशे पण तेमनी भक्ति बहुमान वेयावच्च अने शुश्रूषा नहिं करवा वाला छतां 'मरी घोड़ी नुं बहुमूल थाय' तेनी माफक अमुक काल करी गयेल आचार्य ना तेमनी प्रतिमादि स्थापना द्वाराए आचार्य स्थापना ना भक्त बनी वर्तमान भावाचार्यनी भक्ति थी बेनसीब रही तेमां पोते मगरुबी मानेछेxxx वली ए वात पण ध्यान मां राखवानी छे के जेम वर्तमान काल मां भाव आचार्य, उपाध्याय पदस्थों के पोताना बडीलो विद्यमान छतां अने तेओने ते ते पद ने लायक गुणवाला छे एम मानवा छत्ता साधु साध्वी ना समुदायों मां भिन्न-भिन्न स्थापनाचार्य राखवानी प्रवृत्ति होवा थी रत्नाधिक अटले पोता थी पहेली बड़ी दीक्षा वाला, गुरु महाराजा पदस्थों के आचार्यादिको नी समक्ष कोई पण आवश्यक प्रतिलेखनादि नित्य क्रिया करवानुं पण कर्त्तव्य छे एम मानवा तैयार थतुं नथी, अने ते ते प्रति दिन क्रियाओं साक्षात् भावाचार्यादि पासे न करतां मात्र स्थापनाचार्य पासे करी साधु साध्वी जेवा उत्तम जीवो पण पोताने कृतार्थ मानवा तैयार थाय छे तेवी अविधिना अनुमोदन करनारा शास्त्रकारो बने नहीं अने स्थापनाचार्य आदि द्वाराए भावाचार्यादिक पासे थती भावभीनी क्रियानो भेद थई जाय नहि माटे पणा शास्त्रकारे आचार्य पदनी आराधना तेमनी प्रतिमा द्वाराए न जणावी होय ते स्वाभाविक छ।" (पृ० २३७)
सुन्दर बन्धु! देखलिया? आपके इस स्थापनाचार्य ने कैसी स्थिति उत्पन्न कर दी? श्री सागरानंद सूरिजी ने ठीक ही कहा है कि- स्थापनाचार्य
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