Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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कथाओं के उदाहरण ***** **************************** करने के लिए इन्हीं (मूर्ति पूजक) के मान्य कुछ प्राचीन और अर्वाचीन प्रमाण दिये जाते हैं -
(१) नच चरितानुवाद वचनानि विधि निषेध साधकानि भवंति अन्यथा सूरिकाभादि देव वक्तव्य तायां बहूनां शस्त्रादि वस्तूनामर्चनं श्रूयते। (ज्ञाता सूत्र की टीका-आगमोदय समिति पत्र २११) (२) चरितानुवादरूपं प्रवर्तकं निवर्तकं च न भवतीति ।
___ (सेन प्रश्न आगमोदय समिति पत्र ८) (३) “आर्य रक्षिताचार्ये तेमां चरणकरणानुयोगज व्याख्या मां कर्त्तव्य पणे कहेल छे तेमां शेष त्रण अनुयोगो छे पण तेने व्याख्या कर्तव्य पणे नथी कही।"
(विशेषावश्यक भाषांतर आगमो० स० भा० २ पृ० २३१) (४) चरितानुवाद एटले शुं? भूलवू जोइतुं नथी के चरितानुवाद ए विधिवाद न थी, चरितानुवाद अने विधिवाद मां आकाश पाताल नुं अन्तर छे, अमुक माणसे अमुक काम कर्यु एटले आपणे ते करवुज जोइए अथवा आपणे ते करी शकीए एम माननारा के कहेनाराओं खरेखर सैद्धांतिक आज्ञाओं नुं महान् अपमान करे छ।
(श्री विद्याविजयजी लि. समय ने ओलखो भाग १ पृ० २१५)
(५) श्री शांतिविजयजी “सांझ वर्तमान' दैनिक पत्र के ता० ११-७-२६ के अंक में “बम्बई जैन संघ में चालू चर्चा' शीर्षक लेख के पेरेग्राफ द में लिखते हैं कि -
“चरितानुवाद सर्वव्यापी नहीं, विधिवाद सर्व व्यापी कहा और विधिवाद बलवान है। शास्त्रार्थ के बखत विधिवाद का सबूत देना पड़ेगा।
(चेलेंजोनी पोकलता पृ०७) (६) यही शान्तिविजय जी "रिसाला मजहब ढुंढिये' पृ० १० में लिखते हैं कि -
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