Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
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पूजा से धर्म का कोई सम्बन्ध नहीं था और इस प्रकार द्रौपदी की पूजी हुई मूर्ति भी तीर्थंकर की नहीं थी ।
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क्या द्रौपदी ने नमुत्थु से स्तुति की थी?
द्रौपदी को श्राविका और उसकी पूजी हुई मूर्ति को तीर्थंकर प्रतिमा सिद्ध करने के लिए श्रीमान् सुन्दरजी ने एक दलील यह भी पेश की कि "द्रौपदी ने उस मूर्ति की नमुत्थुणं के पाठ से स्तुति की, ऐसा ज्ञाता सूत्र के मूल पाठ में स्पष्ट लिखा है। इससे द्रौपदी का श्राविका और प्रतिमा का अर्हन् प्रतिमा होना स्वतः सिद्ध है।" इसके समाधान में कहा जाता है कि
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महाशय ! यह तो आप भी इसी पुस्तक के पृ० २५ में स्वीकार कर चुके हैं कि हमारी विस्तीर्ण साहित्य सामग्री कालबल से आक्रमणकारियों द्वारा बहुत कुछ नष्ट हो गई इसके बाद आपको यह भी समझाया जाता है कि जो भी साहित्य बचकर रहा था वह समय की विषमता के कारण शिथिलाचारी, चैत्यवासी या चैत्यवादी यतियों के अधिकार में रहा, वह समय सुविहितों के लिए तो इतना निकृष्ट था कि कितने ही शहरों और गांवों में ये यति लोग उन चारित्र पात्र संयतों को आने ही नहीं देते थे, यदि कोई भूला भटका साधु उधर आ जाता तो भारी शहर में भी उन्हें ठहरने के लिए स्थान ही नहीं मिलता । यति लोग उन्हें बहुत तंग करते, इस विषय में एक दो प्रमाण भी देखिये
(१) आवखते पाटण मां चैत्यवासियों नुं प्राबल्य हतुं ते एटला सुधी के तेमनी संमति सिवाय सुविहित साधु पाटण मां रही न होता ( प्रभावक चरित्र पर्यालोचना पृ० ८५)
सकता ।
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