Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तुंगिका, के श्रमणोपासक **********************************************
१३२
-
%D
"
HTETTE
TRY
हैं। जिसका मतलब गृह सम्बन्धी सांसारिक देव से है, न कि तीर्थंकर की मूर्ति वाले घर देरासर से। इस विषय में एक दो प्रमाण भी लीजिये
(१) मूर्ति पू० मुनि वीरपुत्र श्री आनन्दसागरजी ने स्व अनुदित विपाक सूत्र पृ० ३०० में 'कयबलिकम्म' का अर्थ निम्न प्रकार से लिखते हैं -
"गृह सम्बन्धी देव पूजन की" (२) भगवती सूत्र के इसी वर्णन में बलिकर्म का अर्थ भाषांतरकार
y.
पूजक दिन
SHROONLOD
जान
रदास
प्रकार से
गोत्र'देवी नें पूजन करी" (खंड १ पृ० २७६)
(३) और इसी खंड के पीछे दिये हुए कोष के पृ० ३६१ कॉलमें २ में बलिकर्म शब्द का अर्थ "गृह-गोत्र देवी - पूजन" किया है!(४) इसके अलावा स्वयं सुंदर मित्र (आप) ने ही अपने इस पोथे के ८६ वें पृ में तुंगिया के श्रमणोपासकों के विषय में भर्गवी का पाठ देकर उसका टब्बार्थः दिया, उसमें भी बलिकर्म का अर्थ “आपणा घरना देवता ने कीधा बलिकर्म जेणे लिखा है।
जब मूर्ति पूजक मत से ही बंलिकर्म अर्थ-गृह (सांसारिक) देव की पूजा होता है तब सुन्दर बन्धु इसे तीर्थंकर की मूर्ति पूजा में क्यों घसीटते हैं? क्या मूर्ति मोह के प्रबल असर से ही?
सुन्दर मित्र यहाँ एक युक्ति लगाते हैं कि -
“तुंगिया नगरी के श्रावक अपने धर्म में इतने दृढ़ श्रद्धा वाले थे कि किसी आपत्ति काल में भी किसी देव दानव का स्मरण न को अर्थात् सहायता नहीं इच्छे, इस हालत में यह कहना कहाँ तक ठीक है कि बिना, किसी आफत और अपने पूज्याचार्य देव के वन्दन समय तुंगिया नगरी के श्रावकों ने कुल देवी की पूजा की अर्थात् यह कहना सरासर अन्याय एवं असंगत है।"
Tag:
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org