Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
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श्रमण परिवार सहित पधारे जब तुंगिया के श्रावकों ने ये समाचार सुने तो हर्षित हुए, और वलिकर्म आदि करके स्थविर भगवन्त की सेवा में उपस्थित हुए । सेवा भक्ति के पश्चात् संयम तप आदि विषय में प्रश्न पूछे, स्थविर भगवन्तों ने समाधान किया, श्री गौतमस्वामीजी ने इस विषयक प्रभु महावीर से प्रश्नोत्तर किये।
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इस वर्णन में उन श्रावकवर्गों के लिए यह लिखा है कि वे स्थविर भगवन् की सेवा में उपस्थित हुए जब पहले स्नान " बलिकर्म" किया और वस्त्राऽलङ्कार परिधान कर फिर घर से निकलें।
उक्त प्रकरण में स्नान के साथ जो "बलिकर्म" शब्द आया है उसी को लेकर हमारे मूर्ति पूजक बन्धु उन श्रमणोपासकों को मूर्ति पूजक बता रहे हैं और श्री ज्ञानसुन्दरजी ने भी अपने मूर्ति पूजा के इतिहास के चौथे प्रकरण पृ० ८६ में लिखा है कि -
" आत्म कल्याण की अभिलाषा रखने वाले वे श्रावक खास तीर्थंकरों की मूर्ति की ही पूजा करते थे इतना ही क्यों पर श्रावकों के तो ऐसे अटल नियम भी होते हैं कि वे बिना तीर्थंकरों की पूजा किये मुँह में अन्न जल तक नहीं लेते हैं।
इस प्रकार मनमानी लेखनी चलाकर भोली जनता को भ्रम में फंसाने का प्रयत्न किया है।
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बड़े आश्चर्य की बात है कि जहाँ एक बूंद पानी नहीं हो वहाँ महासागर होने का निष्फल झांसा (धोखा ) देते इन महानुभावों को कुछ भी संकोच नहीं होता, पाठकों को सावधान होकर सोचना चाहिए कि-बलिकर्म शब्द जो कि स्नान शब्द के साथ ही आया है, और जो स्नान की विस्तृत विधि को संक्षिप्त में बताने वाला है। केवल इसी से तीर्थंकर मूर्ति की पूजा करना कैसे सिद्ध हो सकता है? पाठकों
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