Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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२२ क्या सदाचार आदि के लिए मूर्ति पूजा आवश्यक है ******************************************** का खून किये कोई भी मुक्ति नहीं पा सकता। सिद्ध प्रभु भी प्रकृति का खून करके ही शाश्वत सुख पा सके हैं। फिर हम प्रकृति का खून कर अनन्त सुखी बनें, यह तो ठीक और मन भावनी बात है। किन्तु सुन्दर आशय कुछ और ही दिखाई देता है। वे मूर्ति-पूजा को नहीं मानना स्व-पर अहित करना कहते होंगे? जो कि मिथ्या है, जिसका विवेचन आगे यथा स्थान किया जायगा। यहाँ तो हम इतना ही कहेंगे कि-जो मूर्ति-पूजा के प्रचारक हैं, वे कल्याण और मोक्ष के सुन्दर मार्ग का खून करने वाले-बाधक हैं, यह निःसन्देह है। ___ एक दृष्टि से सुन्दर शब्द साधुमार्गियों पर लागू ही नहीं होते क्योंकि सुन्दर सिद्धान्त मूर्ति नहीं मानना ही प्रकृति का खून करना बता रहे हैं। और हमारी समाज तो मूर्ति को मूर्ति मानती है। इसलिए हमारे विषय में ये शब्द लिखना बिलकुल व्यर्थ हो जाता है।
क्या सदाचार आदि के लिये
मूर्ति पूजा आवश्यक है? ___ श्री सुन्दरजी पृ० ३ पर लिखते हैं कि -
"संसार में सदाचार, शांति, सुख और समृद्धि का मूल कारण केवल मूर्ति-पूजा ही है।"
हद हो गई? अन्ध विश्वास के प्रवर्तक महोदय ने कमाल कर दिया??? सरासर झूठ लिखते हुए तनिक भी संकोच नहीं किया।
जिस मूर्ति-पूजा के पीछे केवल जैन समाज के ही लाखों रुपये स्वाहा हो चुके, मानव हत्या का निंदनीय कार्य केशरिया तीर्थ में हुआ। शिथिलाचार और पाखण्ड का दौर दौरा हुआ। सदैव मूर्ति के
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