Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पूयणवत्तिय ******************** ******************
और निर्भय बन गये। यह है इन महानुभावों को मूर्तिमति करतूतों का ज्वलंत प्रमाण * इन मन्दिरों और मूर्तियों के फंदे में फँसकर इन लोगों ने मूल की कैसी दशा बिगाड़ी है, यह उक्त प्रमाण के देखने पर स्पष्ट हो जाता है। अब पाठक ही सोचें कि क्या इस प्रकार धोखेबाजी चलाने से इनकी जड़ पूजा प्रमाणित हो जायगी? हरगिज नहीं। कदापि नहीं। न इस तरह पाठ प्रक्षेप से ही पाखण्ड चल सकता है।
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पूयणवत्तियं श्रीमान् सुंदरजी ने चौथे प्रकरण के पृ०७१ में लिखा है कि - "भगवान् महावीर की मौजूदगी में आपके भक्त लोग आपकी पुष्पादि से पूजाकर आत्म-कल्याण करते थे और इस विषय का शास्त्र में उल्लेख भी मिलता है जरा ध्यान लगाकर देखिये - अप्पेगइया वंदणवत्तियं, अप्पेगइया पूयणवत्तियं।
(उववाई सूत्र) इस प्रकार उववाई सूत्र का नाम लेकर श्री ज्ञानसुन्दरजी भगवान् महावीर-जो कि सचित्त वस्तु को छूते भी नहीं थे, का पुष्पों से पूजा करने का कहते हैं और प्रमाण में उववाई सूत्र का उक्त पाठ बड़े साहस
* केवल दर्शन विजयजी में ही नहीं बल्कि आचार्य श्री विजयलब्धि सूरिजी ने भी “जैन सत्य प्रकाश' वर्ष १ अंक ७ पृ० २०८ में “संतबालनी विचारणा" लेख में इस पाठ में से “जुवई" शब्द निकाल कर अपनी साहुकारी (तस्करवृत्ति) का परिचय दिया है। यह है इन लोगों की सैद्धांतिक सत्यता, मतमोह में पड़कर सैद्धांतिक चोरियां कर डालना तो इन लोगों के बायें हाथ का खेल हो गया है।
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