Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१२
चमरेन्द्र और मूर्ति का शरण *******************************************
पाठक महोदय! देख लिया आपने? दोनों बातों में कितना अन्तर है? दोनों सिद्धान्त एक ही महात्मा के हैं। एक में हिंसा कारी विधान तो दूसरे में उसका निषेध। कैसा परस्पर विरोध? वास्तव में पक्ष व्यामोह चाहे सो करा लेता है। ___ हमारे इतने प्रयास से पाठक समझ गये होंगे कि जैन सिद्धान्त सचित्त और सावद्य पूजा का कदापि प्रतिपादन नहीं करता। श्री सुन्दरजी
और विजयानंदजी ने जो भी हिंसाकारी बातें लिखी है वो केवल कपोल कल्पना ही है।
जबकि प्रभु आज्ञा में ही धर्म माना जाता है और श्री सुन्दरजी ने भी “मेझरनामे' में इस बात को स्वीकार की है। तब प्रभु आज्ञा रूप प्रमाण क्यों नहीं पेश किये जाते? क्यों व्यर्थ ही अर्थ का अनर्थ किया
जाता है?
(१४) चमरेन्द्र और मूर्ति का शरण
श्री ज्ञानसुन्दरजी ने चौथे प्रकरण के पृ० ७३ में लिखा है कि - "चमरेन्द्र ऊर्ध्व लोक में जाता है तब अरिहंत अरिहंत की प्रतिमा और भवितात्मा अनगार का शरणा लेकर ही जाता है" आदि।
इसका उत्तर यह है कि - श्री मद्भगवती सूत्र श० ३ में चमरेन्द्र के ऊर्ध्व लोक में जाने का कथन है वहाँ यह बताया गया है कि जब चमरेन्द्र प्रथम स्वर्ग में गया तब निम्न शरणा लेकर गया, यथा - तंसेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं नीसाए सक्कं देविंद देवरायं सयमेव अच्चासाइत्तए.......सूत्र २७।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org