Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा ****************************************** पकाता है तो कोई आमिष पकाता है। इस प्रकार सभी जीवों की विडंबना होती है। इसलिए जिस प्रकार फूलों की दया बताई, उसी प्रकार इन जीवों की भी दया होनी चाहिए?
(५) पत्र, बेल, कदली फव्वारा आदि से महा पूजा करने में भी दया होती होगी क्या?
श्री विजयानंदजी तो अब संसार में नहीं रहे। इसलिए मेरे प्रश्न का उत्तर उनके वंशज या श्री ज्ञानसुन्दरजी को ही देना चाहिए।
अब तो गुरुओं की कृपा से वैदिक लोगों की भी चोंच खुल जायगी। पहले जैनी लोग उनके प्राणी यज्ञ को हेय दृष्टि से देख कर उन पर आक्षेप करते थे। पर अब यदि यह फूलों का हाल उन्हें मालूम हुआ तो वे भी तपाक से कह देंगे कि जिस प्रकार आप फूलों को भोगियों की विडंबना से बचाकर भगवद् भक्ति में लगाकर दया करते हैं उसी प्रकार हम भी पशुओं को अन्य म्लेच्छों के पेट में पड़ने से बचाकर यज्ञ में होम कर उन्हें स्वर्ग में भेजना चाहते हैं जिसे उन पर दया होती है।
पक्षान्धता क्या नहीं कराती? अभिनिवेश में छके हुए लोग विष को भी अमृत कहते नहीं डरते। अस्तु,
एक तरफ तो पुष्पा से पूजना पुष्पों की दया होना कही गई, अब दूसरा सिद्धान्त श्री विजयानंद सूरिजी का और देखिये -
“सचित्त वस्तु अर्थात् जीववाली वस्तु फूल, फल, बीज, गुच्छा पत्र, कंद, मूलादिक तथा बकरा गाय सूअरादि इनको तोड़े, छेदे, भेदे, काटे सो जीव अदत कहिये, क्योंकि फूलादिक जीवों ने अपने शरीर के छेदने भेदने की आज्ञा नहीं दिनी है जो तुम हमको छेदो भेदो इस वास्ते इसका नाम जीव अदत्त है।" (जैन तत्त्वादर्श पृ० ३२७)
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