Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
१०६ *************************************** देगा तो वह लाभकारी होगी किन्तु उसी औषध को कोई अनाड़ी ऊँट-वैद्य बिना मर्ज समझे ही किसी रोगी को दे डालेगा तो वही
औषध लाभ के बदले हानि कारक होगी इसमें औषध का कोई दोष नहीं है, यदि दोष है तो उस मूर्ख वैद्य का है, जो न रोग को समझता है न औषध के गुण दोष को, बस इसी प्रकार सूत्रों के विषय में भी समझिये इसमें भी दोष सूत्र का नहीं किन्तु पाठक की योग्यता का ही है। अतएव आपकी कुतर्क हवा हो गई, केवल अजैन या विषम दृष्टि के हाथ में जाने या उसके पढ़ लेने मात्र से ही सूत्र अमान्य नहीं होते वे पुनः हमारे पास आ जाने से हम उसका स्वाध्याय करते हैं, उसी प्रकार मूर्ति भी अन्य के अधिकार में जाने मात्र से या अन्य तीर्थी के पूज लेने से ही अपूज्य नहीं हो जाती। यदि ऐसा ही है तो आपके मध्य भारत में मक्षी के पार्श्वनाथ की मूर्ति भी अवन्दनीय अपूजनीय होनी चाहिए क्योंकि उस पर दिगम्बरों का भी अधिकार है, वे भी अपनी विधि से वंदते पूजते हैं और वे तो वन्दते पूजते समय श्वेताम्बरों की की हुई पूजा को ही उतार फेंकते हैं, मूर्ति के नेत्र निकाल लेने के बाद ही पूजते हैं, इसलिए आपके हिसाब से तो वो मूर्ति भी अवन्दनीय होनी चाहिए? इसी तरह मेवाड़ प्रान्त की केशरियाजी की मूर्ति भी आपके लिए अमान्य होनी चाहिए, क्योंकि उसे भी अजैन और भील लोग तक अपना देव मानकर पूजते हैं, भील लोग उस मूर्ति को केशारयानाथ या रिषभदेव की मूर्ति नहीं कहकर कालिया बाबा की मूर्ति कहते हैं और मानते पूजते हैं, पण्डे लोग जो वैष्णव हैं उन्होंने उस मूर्ति को अपना देव होना बताकर उस पर अपना अधिकार जमाकर आपके अधिकार से इनकार किया है। अतएव उसे भी आपको नहीं वंदना पूजना चाहिए।
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