Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
८७ ******************************************* प्रकार “रायपसेणइय" के मूल पाठ में वैक्रिय समुद्धात कर पुष्प वर्षा करने के प्रसंग से फूलों को तोड़कर पूजने का कहना मिथ्या ही है।
यदि वे फूल जल स्थलोत्पन्न होते तो वैक्रिय से विकुर्वणा करने का नहीं कह कर जन्माभिषेक आदि प्रसङ्गों में बताये अनुसार “साहरण' करने का ही उल्लेख होता। ___ समवसरण के फूलों की सचित्तता के विषय में तो स्वयं मूर्तिपूजक विद्वान् ही अभी एक मत नहीं हैं। कुछ लोग उन पुष्पों को सचित्त ही मानते हैं, किन्तु बहुत से विद्वान् उन्हें अचित्त भी मानकर सचित्त मानने वालों से पूछते हैं कि यदि सभी फूल सचित्त मानोगे तो हजारों साधु साध्वी समवसरण में थे। उनको तो समवसरण में पैर रखना ही मुश्किल हो जायगा। इसलिए समवसरण में दोनों तरह के फूल मानने चाहिए। इस प्रकार मतान्तर है जिसका वर्णन “प्रवचन सारोद्धार" में किया गया है तथा “सेन प्रश्न' के उल्लास ३ प्रश्नोत्तर ३८ में भी सचित्त और अचित्त दोनों तरह के फूल माने हैं। पं० बेचरदासजी दोसी ने “रायपसेणइय सुत्त” की टिप्पण में इस विषय के कुछ मतान्तर देकर सचित्त मानने वाले मत को सत्य समझाने के लिए यज्ञ की हिंसा का उदारण देकर एक कटाक्ष फेंका है। अतएव जब मूर्ति पूजक समाज के विद्वान् ही अभी एकमत से समवसरण के फूलों को सचित्त मानने को तैयार नहीं है। तब आप हमें किस मुंह से सचित्त फूल बताते हैं? जो कि सूत्र आशय से सर्वथा विपरीत है। आपके पूर्वाचार्यों ने जो उन पुष्पों को अचित्त के साथ सचित्त भी बताया है उसका विशेष कारण मूर्ति पूजा से गठबन्धन होने का ही हो सकता है। इसलिए दोनों तरह की बातें करते हैं किन्तु वास्तव में सूत्र देखते तो पता लगता कि समवसरण में वैक्रिय से बनाकर ही पुष्प बरसाये गये थे
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