Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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हैं? .
दें?
जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
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“२७-भरतचक्री ने अष्टापद पै बिंब भराये, कौन सिद्धांत में . स्थानकवासी हमसे प्रश्न करते हैं सो बताइये क्या उत्तर ( स्तवनावली पृ० १२८ का प्रश्न २७ वां)
देखें सुन्दर मित्र श्री लाभविजयजी के प्रश्न का क्या उत्तर देते हैं ?
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(19) श्रेणिक और मूर्त्ति - पूजा
श्री ज्ञानसुंदरजी ने पृ० १२७ में लिखा है कि -
" पट्टावली में स्पष्ट लिखा है कि कलिंग से राजा नंद जैन मूर्ति को मगध में ले गया, वह मूर्ति मगधदेश महाराजा श्रेणिक ने स्थापित की थी.... महाराजा श्रेणिक प्रतिदिन १०८ सुवर्ण यव (अक्षत) बनवाकर तीर्थंकरों की मूर्ति के सामने स्वास्तिक करते थे..... महाराजा श्रेणिक ने इस अपूर्व भक्ति से ही तीर्थंकर नाम कर्मोपार्जन किया..... यह कार्य आत्म-कल्याण एवं धर्म कार्य साधन का एक खास अङ्ग था, इसलिये भगवान् महावीर ने उसे न तो मना किया न किसी अन्यत्र स्थान पर इस कार्य साधन का विरोध किया, अतः यह समझना कोई कठिन कार्य नहीं कि भगवान् महावीर भी इस कल्याणकारी कार्य में सहमत थे।
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सुन्दर मित्र जिस पट्टावली का उदाहरण देकर श्रेणिक को मूर्ति पूजक ठहराते हैं, वह शायद मूर्ति पूजकों में ही आदर पात्र और प्राचीन मानी जाती होगी ? किन्तु मैं इनसे पूछता हूँ कि क्या आपकी यह पट्टावली सूत्रों से भी प्राचीन और अधिक प्रमाणिक है ? नहीं, कदापि नहीं। सूत्रों के सामने इसका मूल्य फूटी कौड़ी का भी नहीं । और सूत्रों में जहाँ-जहाँ श्रेणिक, उसकी रानियों, और पुत्रों का वर्णन
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