Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्रेणिक और मूर्ति पूजा ************本子李李李李李李李李李李***李***卒卒卒中
__इसके अलावा भगवान् को मूर्ति पूजा से सहमत बताना या भी पक्ष व्यामोह ही है, क्योंकि भगवान् के ऐसे कोई भी शब्द नहीं, जो मूर्ति पूजा का समर्थन करते हों। उल्टा प्रभु ने तो धर्म के लिए स्थावर प्राणियों तक की हिंसा को आत्म के लिए अहितकारी कहा है|
और मूर्ति पूजा में त्रस, स्थावर की हिंसा प्रत्यक्ष सिद्ध है इसलिए यह कार्य प्रभु आज्ञा से विरुद्ध तो अवश्य है।
सुन्दर मित्र ने बिना किसी प्रमाण के प्रभु को मूर्ति पूजा से सहमत बता दिया, यह एक आश्चर्यजनक बात है, इतना ही नहीं, सुन्दर भाई ने तो यहां तक लिख डाला है कि - "महावीर मूर्ति पूजा के विरोधी नहीं पर कट्टर समर्थक थे।"
(जैन ध्वज ता० १७-८-३७ वर्ष ४ अं० २० पृ० ५). ___ बात यह हुई कि-श्री रामकृष्ण माथुर एम. ए. ने “भारत वर्ष का इतिहास" नामक एक पुस्तक लिखी, जो आनन्द पुस्तकमाला कानपुर से प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक सरकारी स्कूलों में भी पढ़ाई जाती है। इसमें जैनधर्म के सम्बन्ध में लिखते हुए लेखक ने लिखा है कि - "महावीर मूर्ति पूजा के विरोधी थे" बस, इसी के उत्तर में श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज ने "जैनधर्म के विषय में जनता का भ्रम' शीर्षक लेख में बिना किसी आधार के उक्त शब्द लिख डाले हैं, जो कि उन्मत्त प्रलाप से कम नहीं है। यों तो कल से दया दान के विरोधी भी यदि कह दें कि भगवान् महावीर दया दान के कट्टर विरोधी थे, तो ऐसे बाल वचनों का प्रभाव ही क्या हो सकता है? बस इसी तरह सुन्दर मित्र के उक्त शब्द जैन मान्यता के विरुद्ध होने से निरर्थक बकवाद है। आश्चर्य तो यह है कि एक तरफ इन्हीं मूर्ति पूजक महानुभावों के महा मान्य उपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी हमारी
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