Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा ***************************水*************** बाल (केश) अच्छे वस्त्र में लेकर उन्हें यत्न से रखते थे। तथा उन्हें आदर के साथ रखकर समय-समय पर देखते और उन पुत्रादि को याद करते थे यह उनके मोह की प्रबलता थी। उसी प्रकार यहां भी भक्ति का अतिरेक है वे केश रखते थे, ये दाढ़ायें या अस्थियें रखते हैं। वे पुत्र के राग से ऐसा करते थे, ये प्रभु की भक्ति से ऐसा करते हैं। यद्यपि अन्तर दोनों में बड़ा भारी है, तथापि उपादेय तो एक भी नहीं है। . सुन्दर मित्र! जिनेन्द्र के प्रति सच्ची भक्ति जिसे हो वह तो उन धर्मावतारों की आज्ञा का पालन करना ही अपना मुख्य कर्तव्य समझेगा। ऐसी भक्ति ही उसे कल्याणकारी होगी। जैनत्व इसी में है दाढ़ा पूजन में नहीं। जो धर्म गुण पूजा को अग्रस्थान देता हो, जिसमें व्यक्ति पूजा की अपेक्षा उच्च व्यक्तित्व ही उपादेय माना हो, क्या वह धर्म कभी व्यक्ति की हड्डी और राख की पूजा को महत्त्व देगा? कदापि नहीं। __बन्धुवर! यदि हड्डी पूजा जैनों को उपादेय होती तो आज सारी जैन समाज अस्थि पूजक हो जाती, क्योंकि जैनी के लिए जैसे देव पूज्य हैं वैसे गुरु भी पूज्य हैं। इस तरह गुरु की हड्डियें भी पूजा पा लिया करती। किन्तु गुण पूजकों के लिए वह प्रथा उपादेय नहीं होने से ही समाज में नहीं चली। अन्त में आपसे यही कहना है कि मूर्ति के चक्कर में पड़ कर जड़ पूजा को प्रोत्साहन मत दो
और ज्ञेय विषय को उपादेय मत बनाओ। अन्यथा आपका यह मत मोह भव भ्रमण का कारण बन जायगा। गुण पूजकों को जड़ पूजक बनाने का प्रयत्न करना यह सरासर मिथ्यात्व है।
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