Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
६६
भरतेश्वर के मूर्त्ति निर्माण की असत्यता
**************
***************
(१०)
भरतेश्वर के मूर्ति निर्माण की
असत्यता
६७ में लिखा है कि
सुन्दर मित्र ने
पृ०
" श्री भरत चक्रवर्ती ने अष्टापद पर्वत पर चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस मंदिर बनाकर तीर्थंकरों के शरीर वर्ण चिह्न युक्त मूर्तियाँ उन मंदिरों में स्थापना की, सगर चक्रवर्ती के पुत्रों ने उनकी रक्षा की, सम्राट रावण मंदोदरी ने वहां जाकर भक्ति की, गणधर गौतम स्वामी ने उस महान् तीर्थ की यात्रा की, ऐसा उल्लेख जैन शास्त्रों आज भी विद्यमान है।'
""
Jain Education International
-
सुन्दर मित्र का उक्त कथन भी केवल औपन्यासिक ढङ्ग के कहानी ग्रन्थों के आधार पर ही है। क्योंकि चक्रवर्ती महाराजा भरतेश्वर का वर्णन जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में उपलब्ध है, जिसमें उनके स्नान, मंजन, वस्त्रादि परिधान, दिग्विजय तथा शीश महल में केवलज्ञान प्राप्त करने आदि का तो विस्तृत कथन है, किन्तु मन्दिर के लिए एक शब्द भी नहीं है। ऐसी हालत में कथा ग्रन्थों का यह मूर्ति पूजा का प्रमाण पौराणिक गपोड़ा ही पाया जाता है।
ऐसे ही सगर, रावण और गौतम स्वामी के कथन का हाल है ऐसे वर्णनों को केवल अन्ध श्रद्धालु भक्त ही ऐतिहासिक कह सकते हैं। विचारशील सज्जन तो ऐसी बातों से इनके पक्ष को कभी उपादेय नहीं कह सकता। इससे अधिक और क्या कहें ? हां इस जगह मूर्ति पूजक श्री लाभविजयजी का एक प्रश्न सुन्दर मित्र के सामने रख देते हैं -
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org