Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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शाश्वती प्रतिमाएं और सूर्याभदेव ************空********* ** श्रमण कर्त्तव्य-चारित्र-धर्म भूलकर मूर्ति-पूजा के कारण आरम्भ
और आस्रव वर्द्धक उपदेश देकर आप्त आज्ञा का उलंघन करते हैं, जिसके कतिपय नमूने आगे दिये जायेंगे।
इन मन्दिरों और मूर्तियों के कारण कई प्रकार के अनर्थ हुए हैं। मन्दिरों और मूर्तियों में रहे हुए धन वैभव के कारण अनार्य लोगों ने भारत पर चढ़ाई करके देश को बरबाद कर दिया, अछूतों की पशुओं से भी बदतर दशा कर डाली, इसी कारण से दिगम्बरों में अपने को उच्च समझने वाले लोग दस्सों को अछूत समझकर मन्दिरों में नहीं आने देते हैं। अन्धविश्वास और पाखण्ड प्रचार में मूर्ति-पूजा ही अग्रस्थान रखती है। अतएव संसार का जितना अपकार मूर्तिपूजकों ने किया, उतना दूसरों ने नहीं। और जिन सुधारक नेताओं ने मूर्ति-पूजा की भयंकरता देखकर इसका बहिष्कार किया, उन्होंने वास्तव में संसार का उपकार किया है, संसार को बड़ी भारी हानि से बचाने का प्रयत्न किया है। ऐसा करके उन्होंने धर्म के नाम से फैले हुए पाखण्ड का नाश कर धर्म सेवा देश सेवा और संसार सेवा का महान् लाभ प्राप्त किया है। ऐसे स्पष्ट हानि लाभ के कारणों को उल्टा बताने वाले सुन्दर मित्र कैसे सत्य वक्ता हैं? यह पाठक स्वयं समझलें।
(८) शाश्वती प्रतिमाएँ और सूर्याभदेव
सूत्रों में देवलोक की जिन प्रतिमाओं का वर्णन है, उनके शरीरों का भी वर्णन है, वे शाश्वती प्रतिमाएँ हैं, राज्याभिषेक प्रसङ्ग पर देवता उनकी पूजा करते हैं, यह पूजा पद्धति भी परम्परानुसार होती है। इस विषय का विशेष वर्णन उर्ध्वलोक सम्बन्धी "रायपसेणइय
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