Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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शाश्वती प्रतिमाएं और सूर्याभदेव *****************************************
अनुवाद इस भव और पर- |हित कर्ता, सुख | पीछे और पहिले पहले व पीछे .. भव में हित कर्ता, | कर्ता, क्षेम कर्ता, | हित कारी, हितकारी सुखकारी सुख कर्ता, क्षेम कल्याण कर्ता, | सुखकारी, क्षेम-| क्षेमकारी कर्ता, कल्याण मोक्षकर्ता साथ | कारी, कल्याण- कल्याणकारी व कर्ता, मोक्ष कर्ता, | आने वाला होता | कारी मोक्षकारी | साथ आने
और साथ आने | है। (आचारांग | साथ आने वाला होता वाला होगा। जन | अ०८ आप्त कथित) वाला होता है। | है। (रायप्रसेणी समूह से कहा हुआ
भगवती श.२-१/ देव वचन और सूत्रकार से
स्कन्दक वचन | आप्त आज्ञा सम्मत
द्वारा धनलोभी | रहित) (उत्त० अ०२६)
की भावना।)
पाठक सुन्दरजी के दिये हुए कोष्टक और हमारे इस कोष्टक को मिलाकर देखेंगे तो इसमें रहा हुआ भेद स्पष्ट मालूम हो सकेगा।
हमारे उक्त कोष्टक से पाठक सहज ही में समझ जायँगे कि प्रभुवन्दन और चारित्र पालन का फल हित-सुख क्षेम और मोक्षकर स्वयं सर्वज्ञ प्रभु ने बतलाया और शास्त्रकारों ने सूत्र रूप ग्रहण किया किन्तु जिस प्रकार धन रक्षा का फल सूत्रकार की ओर से नहीं पर धनलोभी-द्रव्यासक्त-प्राणी की स्वतंत्र मान्यता बताई है। उसी प्रकार मूर्ति पूजा का फल भी सूत्रकार की ओर से नहीं होकर सामान्य परिषद् के देवों का है। सो भी इहलौकिक शांति के लिये न कि पारलौकिक आत्मकल्याणार्थ! जिस प्रकार वर्तमान समय में जन्मोत्सव, विवाहोत्सव, या विदेश गमन के समय कितने ही देशों में भावि शांति के लिये-निर्विघ्न कार्य पूर्ण रोने की भावना से-देव पूजा की
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