Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा *******中中中中中中中中中中*****************************
बस इसी में इन महानुभाव की चालाकी है। इस एक लाइन में इन महात्मा ने “शास्त्रकार" यह शब्द अज्ञों की आँखों और हृदय पट पर धूल डालने के कुविचार से रक्खा है, क्योंकि सूर्याभ का उत्तर शास्त्रकार ने नहीं, बल्कि उसी की सामान्य परिषद् के देवों ने दिया है। सुन्दर साहब की इस चतुराई (?) का मुख्य कारण यही है कि यह फल देवों के मुख से नहीं होकर शास्त्रकार के ही मुख से होना बताया जायगा, तो फिर किसी को कुछ कहने की जगह ही नहीं रहेगी। हां, सुन्दरजी! साधु कहाकर भी कुटिलता से बाज नहीं आये। इसके सिवाय सुन्दर मित्र ने इस कुटिलता को जनता के हृदय में ठीक तरह से जमा देने के उद्देश्य से एक कोष्टक बनाकर मूर्ति-पूजा, तीर्थंकर वन्दन और संयम पालन तीनों का एक समान फल होना शास्त्र सम्मत बताया है। यहाँ हम इनके इस कुचक्र का छेदन करने के लिये उसी प्रकार का शास्त्र सम्मत एक कोष्टक बनाकर जनता के सामने रखते हैं
मूल
की
तीर्थंकर वंदन फल | संयम पालन फल धन रक्षा फल | मूर्ति-पूजा फल एयेणं पेच्च भवेय |हियं, सुहं, खमं, | पच्छा पुराए । हियाए, सुहाए, णिस्सेयसं अणु
| वि हियाए सुहाए खेमाए, णिस्सेयसाए | गामियं खेमाए निस्से- | खमाए निस्सेअणुगामियत्ताए
यसाए अणुगा- | यसाए आणुगाभविस्सई।
मियत्ताए भवि- मित्तयाए भविस्सई।
स्सति।
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