Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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शाश्वती प्रतिमाएं और सूर्याभदेव
शरीर वर्णन में भिन्नता विश्वोपकारी महान् आत्माओं के शरीर का वर्णन शिख-नख अर्थात् मस्तक से लेकर पैरों तक क्रम से होता है और अन्य मनुष्यों का वर्णन “नख-शिख' अर्थात् पैरों से लगाकर मस्तक तक उल्टे क्रम से होता है। भगवान् महावीर के शरीर का वर्णन "उववाई" और "रायप्रसेणी" सूत्र में “शिख-नख” से हैं, किन्तु इन प्रतिमाओं का वर्णन "नख-शिख' से है, इसलिए ये प्रतिमायें तीर्थंकर की प्रतिमा नहीं मानी जातीं।
प्रतिमा-परिवार तीर्थंकर प्रभु के गणधर, पूर्वधर, लब्धिधर आदि हजारों साधु और साध्वियों का परिवार होता है किन्तु नाग, भूत, यक्षादिकों का नहीं, और इन प्रतिमाओं के परिवार में (पास में) दो दो नाग भूत और यक्ष प्रतिमायें हैं, इसलिए भी ये प्रतिमायें तीर्थंकर की नहीं सिद्ध होतीं। यदि यहाँ यह कहा जाय कि इन प्रतिमाओं के सामने जो नाग भूतादि की प्रतिमा हैं वह सेवा में करबद्ध खड़ी हैं इससे इन जिन प्रतिमाओं का महत्त्व है तो यह भी अनुचित है क्योंकि तीर्थंकर प्रभु की सेवा में नाग भूतादि तो क्या वैमानिक देवों के बड़े-बड़े इन्द्र भी खड़े रहते हैं, तब इन मामूली (साधारण से साधारण) देवों का महत्त्व ही क्या? और सो भी सूर्याभ विमान में, स्वयं सूर्याभ से भी वे नाग भूतादि देव हल्की कोटि के हैं, तो वहाँ इनका महत्त्व कुछ भी नहीं है। वहाँ तो बड़े-बड़े इन्द्रों की प्रतिमा होनी चाहिये थी अतएव सिद्ध हुआ कि वे जिनप्रतिमाएँ तीर्थंकर प्रतिमायें नहीं हैं।
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