Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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शाश्वती प्रतिमाएं और सूर्याभदेव
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. सुन्दर मित्र ! गोशीर्ष चन्दन का लेप शरीर को शांति पहुँचाने व शीतल रखने के कारण किया जाता था, यह कोई उबटन नहीं था जिसे धोकर साफ करने की जरूरत पड़े यदि इतना भी ज्ञान आप में होता तो आपका "ज्ञानसुन्दर” नाम निरर्थक सिद्ध नहीं होता ।
महदाश्चर्य तो इस बात का है कि श्री ज्ञानसुन्दरजी तो फिर भी मातृ भाषा के शुद्ध ज्ञान से रहित हैं इसलिए अपनी अज्ञता के कारण इनसे कोई मनकल्पित अनर्थ भी हो जाय, पर आगमोद्धारक, आचार्य देव कहाने वाले श्री सागरानन्दसूरिजी ने भी अपने वाजिंत्र सिद्ध चक्र पाक्षिक वर्ष ७ अंक ६ में सूर्याभ की मूर्ति पूजा का वर्णन करते हुए इस शब्द का अर्थ वस्त्र चढ़ाना लिखा है, और यही आचार्य • इस शब्द का जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति और आचारांग के पाठ देते हुए पहिनाना अर्थ करते हैं, क्या, पक्षान्धता की भी कोई सीमा है? यदि "नियंसेति" का अर्थ चढ़ाना ही हो तो इन लोगों को यह भी मानना चाहिये कि स्वयं सूर्याभ ने और भगवान् महावीर व भरतेश्वर कोणिक आदि ने भी वस्त्र नहीं पहिने पर अपने पैरों में चढ़ा लिये ? जबकि इन्हीं के मान्य टीकाकार मूर्ति को वस्त्र पहिनाना स्वीकार करते हैं तब ये आज कल के महान् आचार्य (?) पक्षपात के चक्कर में पड़कर इस प्रकार अनर्थ करने लग जायँ, यह कितनी हास्यजनक बात है ?
इस प्रकार स्पष्ट सिद्ध हो गया कि सूर्याभ ने मूर्ति को वस्त्र पहिनाये थे और तीर्थंकर वस्त्र नहीं पहनते, अतएव यह प्रतिमा तीर्थंकर की नहीं है।
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