Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा *******************************************
२. मूर्ति-पूजा ही के कारण देवदासी जैसी भयङ्कर प्रथा का प्रादुर्भाव हुआ। इस प्रथा का कुछ असर जैनियों पर भी हुआ, और यहाँ तक कि जैनियों के बड़े आचार्य कहे जाने वाले गोविन्दाचार्य * तथा हेमचन्द्राचार्य ने मन्दिरों में नर्तकियों-वेश्याओं का नाच करवाया। वर्तमान में भी कहीं कहीं मन्दिरों में दैनियों की कन्याओं को नचाकर इसे भक्ति का रूप दिया जाता है। विक्रम सं० १९६३ में श्रीमान् विद्याविजयजी ने भी करांची में ऐसा किया था, ऐसा समाचार पत्र से मालूम हुआ था। इस प्रकार मूर्ति-पूजकों ने धर्म की ओट लेकर क्या-क्या ढङ्ग रचा, यह स्पष्ट दिखाई देता है। सुरिले वादिंत्र और गान तान के साथ नृत्य करवाकर मूर्ति-पूजक महानुभावों ने विषय विकार का पोषण ही किया है।
३. मन्दिरों और मूर्तियों के अधिकार के लिये मूर्ति-पूजकों ने मानव हत्या भी करवाई जिसका ज्वलंत उदाहरण केशरिया तीर्थ का हत्याकांड है। _____४. मन्दिरों और मूर्तियों की आड़ में प्रतिवर्ष हजारों प्राणी तलवार के घाट उतारे जाते हैं। और जैनियों में भी असंख्य त्रस तथा स्थावर जीवों की हिंसा प्रतिदिन प्रत्येक स्थान में होती है। इस हिंसा को भी धर्म का कारण मानकर मूर्ति-पूजक जैनियों ने सम्यक्त्व को दूषित किया है।
५. मूर्ति-पूजा ही के कारण जैन मुनियों में चारित्र सम्बन्धी शिथिलता फैली यहाँ तक कि उग्रविहारी मुनि भी मठाधीश बनकर वैभवशाली बन बैठे। इस विकार को नष्ट करने के लिए ही धर्मप्राण लोकाशाह को क्रांति मचानी पड़ी। आज भी बहुत से साधु अपना
* देखो ‘प्रभावक' चरित्र तथा कुमारपाल चरित्र।
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