Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
१३ ****************************************** यावत् उनको जीवत्व से रहित न करना चाहिये, यही धर्मशुद्ध है, शाश्वत है, ऐसा खेदज्ञ श्री महावीर प्रभु ने कहा है। जो प्रमाद में पड़े हैं, या प्रमाद रहित हैं, जो त्यागी नहीं हुए हैं, या त्यागी हो चुके हैं, इत्यादि सब जीवों के लिये यह प्रभु भाषित धर्म यथातथ्य है। ___ प्रभु ने साधु श्रावक के लिए जो साधना बताई, वह भी प्रभु के उपदेश से ही सुनिये, यथा -
"तमेवधम्मंदुविहं आइक्खंतितंजहा-अगारधम्म अणगार धम्मं च, अणगारधम्मो ताव इह खलु सव्वतो सव्वताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयई सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं, सव्वाओ राइभोयणाओ वेरमणं अयमाउसो! अणगार सामाइए धम्मे पण्णत्ते एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवहिए णिग्गंथे वा णिग्गंथी वा विहरमाणे आणाए आराहए भवंति अगारधम्मंदुवालसविहं आइक्खइतंजहा-पंच अणुव्वयाई तिण्णि गुणवयाई चत्तारि सिक्खावयाई पञ्च अणुव्वयाइतंजहा-थूलाओपाणाइवायाओवेरमणं, थूलाओ मुसावायाओ वेरमाथूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छा परिमाणे, तिण्णि गुणव्वयाइं तंजहा - अणत्थदंड वेरमणं, दिसिव्वयं, उवभोगपरिभोगपरिमाणं, चत्तारिसिक्खावयाइतंजहासामाइयं, देसावगासियं, पोसहोववासे, अतिहिसं
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