Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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धर्म- मार्ग
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प्रकरण में आज्ञा पालन ही धर्म है इस विषय में एक पूर्ण प्रकरण
लिखा है।
१२
जिनागमादि उक्त प्रमाणों से यह स्पष्ट सिद्ध हो गया कि जिस कार्य के करने की प्रभु आज्ञा है वह धर्म है । और जिसके लिये आज्ञा नहीं, वह कार्य करना, अथवा आज्ञा के विरुद्ध कृत्य करना अधर्म है। तीर्थंकर प्रभु ने कैसा धर्म बतलाया ? एकान्त हितकारी, सुखकारी एवं मोक्षकारी धर्म का स्वरूप क्या है ? इस सम्बन्ध में बताया है।
" से बेमि जेय अतीता, जेय पडुप्पन्ना, जेय आगमिस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वेवि एवमाइक्रवंति एवभासंति एवं पण्णविंति एवं परुवेंति - सव्वेपाणा, सव्वेभूया, सव्वेजीवा, सव्वेसत्ता, ण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा ण परिघेतव्वा ण परित्तावेयव्वा ण किलामेयव्वा, ण उद्यवेयव्वा, एस धम्मे सुद्धे, णितिए, सासए समेच्चलोयं खेयन्नेहिं पवेतिते तंजहा - उट्ठिएसु वा अणुट्टिएस वा उवरयदंडेसु वा अणुवरयदंडेसु वा, सोवहिएसु वा अणोवहिएस वा, संजोगरएसु वा, असंजोगरएसु वा तच्चचेयं तहाचेयं, अस्सिंचेयं
"
पवुच्चई ।"
(आचा० श्रु १ अ० ४ उ० १) तात्पर्य - सुधर्म स्वामी कहते हैं कि अहो जंबु ! भूतकाल में जो अनंत तीर्थंकर हुवे हैं, वर्तमान में जो हैं, और जो भविष्य में होंगे वे सब अरिहंत भगवान् ऐसा कहते हैं, ऐसा बतलाते हैं कि किसी प्राणी, भूत, जीव, सत्व को मारना ताड़ना व घात करना न चाहिए,
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