Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रारम्भ में ही पथ भ्रष्ट **********************************************
३. कर्म बन्ध भी पुद्गल द्रव्य ही है, जो कि जैन दृष्टि से हेय वस्तु है, सुंदरजी के सिद्धांत से तो यह भी उपादेय होकर पूजनीय होना चाहिए?
___४. धन, धान्य, स्त्री, परिवार, वस्त्र, आभूषण, जूते, तलवार, बन्दूक आदि पुद्गलों को भी पूजना चाहिए?
५. पुद्गल के अनादि होने से ही मूर्ति-पूजा भी अनादि और उपादेय है तो फिर पुद्गलों से ही पुद्गल की पूजा करना कैसे उचित " कहा जा सकता है ? पूजने योग्य मूर्ति भी पुद्गल और उसकी पूजा
की सामग्री अर्थात् पुष्प, फल, धूप, चाँवल, केशर, चन्दन और पैसा आदि भी पुद्गल, तो पुद्गलों से पुद्गल की पूजा करना क्या बुद्धिमत्ता का कार्य है? पौद्गलिक पन तो सब में है, फिर एक पूज्य और दूसरे उसकी पूजा की सामग्री। यह कल्पना क्यों?
जबकि अखिल जैन समाज पुद्गल रूपी मूर्त द्रव्य से अमूर्त आत्मा का पिण्ड छुड़ाने का प्रबल उपदेश दे रहा है। जिन जिन आत्माओं ने पुद्गल को सर्वथा छोड़ दिया है वे ही "सिद्धिगइ नामधेयं ठाणं संपत्ताणं" हुए हैं, और भविष्य में भी ऐसे ही महात्मा मुक्त हो सकेंगे। यह मान्यता समस्त जैन शासन की है। ऐसी दशा में मूर्ति-पूजा के मोह और साधुमार्गी समाज पर के अपने द्वेष रूप मद में मस्त होकर पुद्गल की अनादिता से ही मूर्ति-पूजा की अनादिता और उपादेयता सिद्ध करने वाले सुन्दर बन्धु कब सद्मार्ग के पथिक होंगे? .
एक जैन साधु और ऊपर से विद्वत्ता का दम भरने वाले ही जब मत मोह में मस्त होकर पुद्गल पूजा में धर्म बतलाने, पुद्गल के सम्मुख जनता की प्रवृत्ति करने की चेष्टा करें और साथ ही पुद्गलों से
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