Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१०
धर्म-मार्ग ************************************** हमसे पत्र द्वारा पूछलें। हम यथाशक्ति समाधान करने का प्रयत्न करेंगे। हम अपने पाठक महोदयों से विशेषरूप से यह भी निवेदन करते हैं कि वे इस पुस्तक को कम से कम एक बार अथ से इति तक, ध्यान पूर्वक पढ़ें।
(२)
धर्म-मार्ग जैन समाज का यह सर्वमान्य सिद्धान्त है कि जैनागमों की रचना घातीकर्म को क्षय करके अनन्त ज्ञान दर्शन को प्राप्त करने वाले सर्वज्ञ वीतराग और तीर्थ के नायक पूर्ण एवं आप्त प्रभु के विशिष्ट ज्ञान में से हुई है। ऐसे पूर्ण और वीतराग प्रभु की आज्ञा विश्व के समस्त प्राणियों के लिए एकान्त कल्याणकारी होती है। जब तक मनुष्य ज्ञानावरणीय कर्म का सर्वथा उन्मूलन नहीं कर सकता तब तक वह अपूर्ण ही है। ऐसे अपूर्ण मानवों के लिए आत्मकल्याण का यही मार्ग है कि वे सर्वज्ञ आज्ञाओं का पालन कर उसी मार्ग से अपनी अपनी उन्नत्ति साधे। जैनागमों में सबसे प्रथम स्थान आंचारांग सूत्र को प्राप्त है। इसमें एक स्थल पर लिखा है कि -
'आणाएमामगंधम्म, एस उत्तरवादे, इहमाणवाणं, वियाहिते।' (आचारांग श्रु० १ अध्ययन ६ उद्देशक २)
अर्थात् - आज्ञा से मेरे धर्म को पालन करे। यह पूर्वोक्त कथन मनुष्यों के लिये उत्कृष्टवाद कहा गया है।
“अणाणाएएगेसोवट्ठाणे आणाएएगे निरुवट्ठाणे एवं ते मा होउ एयं कुसलस्स दंसणं।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org