Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
उनमें गुरुत्व के गुण तो है ही नहीं, केवल वेषभूषा से ही वे हमें धोखा दे रहे हैं। तो शीघ्र ही उनका बहिष्कार और निरादर कर दिया जाता है। जैनागमों के अभ्यासी यह जानते हैं कि जब तक जमाली, गोशाला आदि में शुद्ध श्रद्धा थी, तब तक ही वे जैनियों के लिए वन्दनीय - पूजनीय थे । किन्तु जब वे श्रद्धा भ्रष्ट हुए और इसकी खबर जैनियों को लगी तब शीघ्र ही वन्दना नमस्कार बंद कर बहिष्कार बोल दिया। यह गुण - पूजकता का ज्वलन्त उदाहरण है ।
तीर्थंकर प्रभु का जन्म होता है, तब इन्द्रादि देवों से किये गये जन्मोत्सव से यह मालूम हो जाता है कि जिनका इन्द्रों ने जन्मोत्सव किया ऐसे तीर्थंकर प्रभु संसार का कल्याण कर इसी जन्म में मोक्ष पधारेंगे। इतना जानते हुए भी जब तक तीर्थंकर महाराज गृहस्थावस्था में रहते हैं तब तक कोई भी व्रती श्रावक या साधु उन्हें तीर्थंकर रूप से वन्दना नमस्कार तथा सेवा - भक्ति नहीं करता और जब तीर्थंकर प्रभु का निर्वाण हो जाता है तब - देह - शरीर के यहाँ रहते हुए भी जैन संसार में तीर्थंकर विरह का महान् शोक छा जाता है और उनके शव को जलाकर नष्ट कर दिया जाता है। क्योंकि वंदनीय पूजनीय जो गुणी आत्मा थी, वह तो गमन कर गयी। इससे स्पष्ट है कि जैन समाज जड़ पूजक या व्यक्ति पूजक नहीं, वरन् गुण पूजक ही है । यदि व्यक्ति पूजा या जड़ शरीर की पूजा ही मुख्य होती तो तीर्थंकर के गृहस्थावस्था में रहते हुए या निर्वाण के पश्चात् उनका शव भी वन्दनीय, पूजनीय माना जाता और मूर्त्ति के स्थान में वह शव ही मन्दिरों में सुरक्षित रखा जाता। जैसे की कई देशों में मसाले भरकर शव रखे जाते हैं। आज भी संसार में अनेक धर्मों के धर्म गुरुओं - नेताओं के देहोत्सर्ग पश्चात् उनके शरीर को अपनी
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