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'चाहिये क्याकि उनके गुणों के आश्रित होकर ही अपने आत्मा में गुण उत्पन्न करलेने चाहिये ।
समझाओ ?
पक्ति की ओर एक
प्रश्न - इस विषय में कोई दृष्टात देकर उत्तर -- जिस प्रकार कोई व्यक्ति पुष्प दृष्टी लगाकर देखता रहे तथा चन्द्रमा या जल की ओर देखता रहे तब उस आत्मा के चक्षुओं में शाति के परमाणुओं का राधार होजाता है जिसके कारण मे उसके चक्षुओं में धाति आजाती है। ठीक उसी प्रकार श्री भगवान का स्मरण करते हुए एकतो आत्मा में शाति का सचार होजाता है, द्वितीय वर्ग विपर्यय करने से आत्म क्ल्याण होजाता है जैसे कि - जिन ध्यान करते २ जब वर्ण विपर्यय किया गया तब निज ध्यान वन जाता है। जब निज ध्यान होगया तब जिन ध्यान करते समय जो २ गुण जिनेद्र भगवान में अनुभव द्वारा अनुभव करने में आय थे फिर वे सर्व गुण निज आत्मा मे माने जा सकते हैं
प्रश्न -- इसमे कोई प्रमाण दो ?
उत्तर - जिस प्रकार सिद्ध भगवान सर्वेक्ष ना सर्व दर्शी है ठीक उक्त गुण मेरे आत्मा में भी विद्यमान हैं किंतु ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म के माहाम्य मे