________________
पृथक हो जाता है जिसमे वह आत्मा विशुद्धि को प्राप्त हो जाता है ।
प्रश्न -भला नाम रटने से कर्म रूपी सर्प किस प्रकार भाग सकते हैं ?
हुए
उतर:- जिस प्रकार चन्दन के वृक्ष को सर्प चिपटे होते हैं जब वे मयूर (मोर) वा गरुड के शब्द को सुनते हैं तब वे शब्द को सुनकर भाग जाते हैं । ठीक उसी प्रकार जब आत्मा अहंत वा सिद्ध भगवतों का नाम स्मरण कर लेता है तब उसके अत, करण, मे समभाव उत्पन्न होजाता है फिर उस समभाव के उत्पन्न होजाने से उसकी प्राणी मान से निर्वैरता होजाती है । जिस समय निर्वैरता हुई तब उस समय उस आत्मा के राग द्वेष के भाव
>
सम होजाते हैं जिस कारण से फिर वह अत्मा कर्म क्षय वा प्राय शुभ कर्मों का ही बंधन करता है । अतएव, अहं वा सिद्ध आत्माओ का आत्म विशुद्धि, के लिये पाठ अवश्य करना चाहिये -
1
,
प्रश्न – कर्म शत्रु नष्ट करने के लिये ९ष्ण भावों की अत्यव आवश्यकता है क्योंकि यावत्काल पर्यंत शत्रु को
उप्रभाव न दिखाया जावे तावत्काल पर्यंत' वह शत्र
Jay