Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
मुनि-जीवन हजारी का दीक्षा ग्रहण :
स्वामीजी महाराज ने एक दिन नागौर (मरुभूमि) में अपने पूज्य प्रतापी गुरुवर श्रीजोरावरमलजी महाराज के दर्शन किए और वि० सं० १९५४ ज्येष्ठ कृष्णा दशमी को उसी नागौर नगर में नैतिकाचार के निष्ठावान् गुरु स्वामी श्रीजोरावरमलजी महाराज के कर-कमलों द्वारा भागवती दीक्षा ग्रहण की. दीक्षा धारण करने से पूर्व माता के चरण छुए. पुत्र ने माता से कहा : "माता, मैंने 'मेरी माता' सम्बोधन उस पत्र में अन्तिम बार किया था. आज तुम्हारे अन्तिम बार चरण-संस्पर्श कर रहा हूँ. आज के बाद मैं तुम्हारे चरण का स्पर्श भी नहीं करूँगा. गुरुदेव का कहना है-'संसार के समस्त नारीवर्ग का दीक्षा के बाद पल्ला भी नहीं भेटना है. जिनत्वभाव की पूर्णता का यह प्रथम सोपान है. नियम की इस दृढ़ता के बल पर ही जिनत्व का अंकुर प्रस्फुटित हो सकता है. अतः अब नेत्रों से चरण स्पर्श अनुभव किया करूँगा. गुरु की आज्ञा में जो विधि-निषेध होते हैं वे एक व्यक्ति को संलक्ष्य करके नहीं कहे जाते. नेत्रों से नारी के चरण-स्पर्शन में नारी का पल्ला भेटने की आवश्यकता नहीं पड़ती. नेत्रों से नारी के चरण स्पर्श करने पर नारी में पवित्रता और शुचिता का भाव अवतरण होता है." माता ने पुत्र की ज्ञान-पूर्ण बात सुनी और कहा : "बेटा, तूने गुरु के ज्ञान को ठीक ढंग से हृदयांकित किया है. तू स्वयं ही गुरु चरणों में रहते-सहते सुज्ञानवान हो गया है, तथापि एक माता पुत्र के लिए मंगल और उन्नति की कामना रखती है तदनुसार आज मैं तुझे यही अन्तिम बार कहना चाहती हूँ कि मैं तो जब मेरी भव-भ्रमण की स्थिति का काल परिपाक होगा तब दीक्षा धारण करूँगी ही, परन्तु बेटा, तू साधना की वह स्थायी उपलब्धि करना जिससे दोबारा तुझे किसी माता के उदर में जन्म धारण न करना पड़े. और न फिर तुझे किसी माता की कुंख दुखाने का अवसर प्राप्त करना पड़े. फिर कभी किसी माता के आँसू तेरे ममत्व में न ढुलके !! बस मेरा यही आशीर्वाद तेरी वीतराग-पथ की विमल साधना के प्रति है !" माता से पुत्र कुछ दूर हटा. माता की आँखों से मातृ-स्नेहवश आँसू छलक पड़े. विश्वपुत्रों में हजारी के दर्शन का संकल्प करने वाली माता की चोली गीली हो गई. माँ ने कहा "देख बेटा, महावीर के मार्ग पर चलते हुए कहीं साधना की श्वेत चादर में कलंक का काला धब्बा न लगने पाए. इस संयम-ग्रहण को महावीर की विमल चादर मानना. मेरी ओर से बस इतना ध्यान रख लेना कि माता के श्वेत दूध में कायरता का काला दाग न लगने पाए."
बालमुनि की भीष्म प्रतिज्ञा और भाषण : गुरु से दीक्षा-मंत्र लेने से पूर्व चरितनायक दीक्षा-स्थल पर मुनिवेश धारण करके आए. गुरु को विधिवत् वन्दन किया. कर-बद्ध खड़े होकर गुरुदेव से नम्र निवेदन प्रस्तुत किया : "हे परमपूज्य गुरुदेव ! रागद्वेष का नाश करने के लिए, धन-जन का मोह बिसारने के लिए, पाप-वृत्ति से निवृत्ति पाने के लिए-मैं आपका शिष्यत्व स्वीकार करना चाहता हूँ. मुझे अपनी शरण में लेकर कृतार्थ कीजिये. आपकी कृपा का आश्रय लेकर मैं इस संसार-सागर से, जिसमें जन्म-मरण के भंवर हैं, संकटों की अथाह सलिलराशि है--ऐसे आधि-व्याधि रूप
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org