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[३७ ] में 'अर्कचोदुम्बर' की जगह 'ह्य आमलकः ऐसा परिवर्तन किया गया जान पड़ता है । दोनों पाठभेद साधारण हैं, और परिवर्तित पद के द्वारा उदुम्बर काष्ट की जगह आँवले की दाँतन का विधान किया गया है।
कुशाः काशा यवा दूर्वा उशीराश्च कुकुन्दराः।
गोधूमा ब्रीहयो मुंजा दश दर्भाः प्रकीर्तिताः ।। ३-८१ ॥ यह 'गोभिल' ऋषि का वचन हैं । स्मृतिरत्नाकर में भी इसे 'गोभिल' का वचन लिखा है । इसमें 'गोधूमाश्चाथ कुन्दराः' की जगह 'उशीराश्च कुकुंदरा:' और 'उशीराः' की जगह 'गोधूमा:' का परिवर्तन किया गया है, जो व्यर्थ जान पड़ता है; क्योंकि इस परिवर्तन से कोई अर्थभेद उत्पन्न नहीं होता-सिर्फ दो पदों का स्थान बदल जाता है।
एकांतयुपविष्टानां धर्मिणां सहभोजने ।
यद्येकोऽपि त्यजेत्यानं शेषैरनं न भुज्यते ॥६-२२० ॥ यह पद्य, जिसमें सहभोजन के अवसर पर एक पंक्ति में बैठे हुए किसी एक व्यक्ति के भी पात्र छोड़ देने पर शेष व्यक्तियों के लिये भोजनत्याग का विधान किया गया है, जरा से परिवर्तन के साथ 'पराशर' ऋषि का वचन है और वह परिवर्तन ‘विप्राणां' की जगह 'धर्मिणां' और 'शेषमन्नं न भोजयेत् ' की जगह 'शेररनं न भुज्यते ' का किया गया है, जो बहुत कुछ साधारण है ।
* यथाः-१ 'मूत्रं प्रस्राव:'-इति अमरकोशः । २ 'प्रस्रावः मृत्रं'-इति शब्दकल्पद्रुमः। ३ 'उच्चारपस्सणेत्यादि' उच्चारः पुरीषः प्रस्रवणं मूत्रं ।
-ति क्रियाकलापटीकायां प्रमाचन्द्रः । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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