________________
[१५] पचे मर जाते हो उसे पंद्रह वर्ष और जो अप्रियवादिनी (बटु भाषण करने वाली ) हो उस फौरन ( तत्काल ही) त्याग देना चाहिय । भट्टारकजी के इस त्याग' के दो अर्थ किये जा सकते हैं-एक 'संभोगत्याग' और दूसरा वैवाहिक सम्बंध त्याग'। 'संभोगत्यागमर्थ महारकजी के पूर्व कपन की दृष्टि से कुछ संगत मालूम नहीं होता क्योंकि ऐसी स्त्रियाँ ऋतुगती तथा ऋतुस्नाना तो होती ही हैं और ऋतुकाल में ऋतुस्नाताओं से भोग न करने पर महारकजी ने पुरुषों का भ्रूणहत्या के घोर पाप का अपराधी ठहराया है और साय में उनके पितरों को भी घसीटा है; ऐसी हालत में उनकास वाक्य से 'संभोगत्याग'का माशय नहीं लिया जासकता-बहभापत्ति के योग्य ठहरता है-तब दूसरा 'वैवाहिक सम्बन्ध त्याग' अर्थ ही यह टीक बैटता है, जिसे 'तलाक़Divorce कहते हैं और जो उक्त पार से मुक्ति दिला सकता अथवा सुरक्षित रख सकता है । इस दूसरे अर्थ की पुष्टि इससे भी होती है कि भट्टारकजी ने संभोगत्याग की बात को मतान्तर रूप से दूसरों के मत के तौर पर (अपने मत के तौर पर नहीं)भगले पप में दिया है । और वह पद्य इस प्रकार है:--
ग्याधिना सीप्रजा धरण उन्मत्ता विगतातथा।
भदुष्टा लभते त्यागं तीर्थतो न तु धर्मतः ॥१६॥ इस पप में बतलाया है कि जोखी (चिरकाल से) रोगपीडित हो, जिसके केवन कन्याएँ ही पैदा होती रही हो, जो वन्ध्या हो,उन्मत्त हो, अथवा रजोधर्म से रहित हो (जस्वला न होती हो) ऐसी स्त्री यदि दुष्ट स्वभाव वानी न हो तो उसका महज कामतीर्थ से त्याग होता है--यह संभाग के लिये त्याज्य ठहरती है--परंतु धर्म से नहीं--धर्म से उसका पनीसम्बंध बना रहता है। .
+ मराठी अनुवाद-पुस्तक में पच के ऊपर मतान्तरं' का अनुवाद . दुसरे मत" दिया है परन्तु सोनीनी अपनी अनुशद पुस्तक में उस बिलकुल ही रहा गये हैं!
२४
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com