Book Title: Granth Pariksha Part 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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शुद्धि-पत्र ।
पृष्ठ
पंक्ति
१७-१८
अशुद्ध शुद्ध उठाधरी उठाईधरी आदि करनेका करने और धोखेसे बचनेका मजबूर कुछ मजबूर वर्णान्नः पाती वान्तःपाती
१६
सदृशः विभिन्न
सदृशः दो विभिन्न
३२
१८३
१८८
१५.०
चुराचाति उत्सर्ग के उधार अनने उनके भार्यत्वमेव सद्रव्यपूर्णम् वो भवीति द्राधीयं पुमंगलीय परिवेष्टनं गोशार्ष ह्युपात्ताध पावन वृत्य श्वसुरालये बरको पति यह यापापनोदनः जनता दाणम्
चुराश्वाति उत्सर्ग उद्धार अनेन उनकी भार्यात्वमेव सद्व्य पूर्णम् बोभवीति द्राधीय पुनर्मगलीयं परीवेष्टनं गोशीर्ष छुपातार्च पान कृस्य श्वशुरालये बह उस घरको पतिशब्दः
१९९ २१५ २२५
पापापनोदनः जानता दारुणम्
२१२
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