Book Title: Granth Pariksha Part 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 251
________________ धर्मपरीक्षाको परीक्षा। कृत्वा कृतीः पूर्वकृताः पुरस्तात्प्रत्यादरं ताः पुनरीक्षमाणः । तथैव अल्पेश योन्यथा वा स काव्यचोरोऽस्तु स पातकी च ॥ -सोमदेवः । स्वेताम्बर जैनसम्प्रदायमें; श्रीधर्मसागर महोपाध्यायके शिष्य पनसागर मणीका बनाया हुआ 'धर्मपरीदा' नामका एक संस्कृत ग्रंथ है, जिसे, कुछ समय हुमा, सेठ देवचंदलालभाई के जैनपुस्तकोद्धार फंड बम्बईने छपाकर प्रकाशित भी किया है । यह ग्रंथ संवत् १६४५ का बना हुक्रा है। जैसा कि इसके अन्तमें दिये हुए निम्नपद्यसे प्रकट है: तद्राज्ये विजयिन्यनन्यमतयः श्रीवाचकाग्रेसरा चोतन्ते भुवि धर्मसागरमहोपाध्यायशुद्धा धिया। तेषां शिष्यकणेन पंचयुगपट्चंद्रांकिते (१६४५) वत्सरे बेलाकूळपुरे स्थितेन रचितो ग्रन्थोऽयमानन्दतः ॥१४॥ दिगम्बर जैनसम्प्रदायमें भी 'धर्मपरीक्षा' नामका एक ग्रंथ है जिसे श्रीमाधवसेनाचार्य के शिष्य अमितगति नामके आचार्यने विक्रमसंवत् १०७० में बनाकर समाप्त किया है। यह ग्रंथ भी छपकर प्रकाशित हो चुका है। इस ग्रंथका रचना-संवत् सूचक अन्तिम पद्य इसप्रकार है:संवत्सरा विगते साले, ससप्तता (१०७०) विक्रमपार्थिवस्य । दं निषिघ्याम्पमतं समातं, जिनेन्द्रधर्मामितयुक्तिशास्त्रम् ॥ २० ॥ इन दोनों ग्रंथोंका प्रतिपाप विषय प्रायः एक है। दोनोंमें 'मनोवेम' और 'पवनवेग' की प्रधान कथा और उसके अंतर्गत अन्य अनेक उपकपाभोंका समान रूपसे वर्णन पाया जाता बल्कि एकका साहित्य दूसरे ३१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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