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देवता की अभिषेक - पुरस्सर पूजा वाला वह मंत्र दिया हैं जो 'प्रतिज्ञादि विरोध' नामक प्रकरण के ( ज ) भाग में उद्धृत किया जा चुका है, और लिखा है कि 'इस मंत्र को पढ़कर गोवर, गोमूत्र, दूध, दही, घी, कुश और जल से योनि का अच्छी तरह प्रक्षालन करना चाहिये और फिर उसके ऊपर चंदन, केसर तथा कस्तूरी आदि का लेप कर देना चाहिये' * | इसके बाद 'घोनिं पश्यन् जपेन्मंत्रान्' नाम का ४३ वाँ पब दिया है, जिसमें उस चंदनादि से चर्चित योनि को देखते हुए + पंच परमेष्ठिवाचक कुछ मंत्रों के जपने का विधान किया है और फिर उन मंत्रों तथा एक आलिंगन मंत्र को देकर उक्त दोनों श्लोक नं ० ४४, ४५ दिये हैं । इन श्लोकों द्वारा मट्टारकजी ने यह आज्ञा की है कि 'स्त्री पुरुष दोनों परस्पर मुँह मिला कर एक दूसरे के होठों को अपने होठों से खींचें, एक दूसरे को देखें और हाथों से छातियाँ पकड़ कर एक दूसरे का मुख चुम्बन करें। फिर 'बलं देहि' इत्यादि मंत्र को पढ़ कर योनि में लिंग को दाखिल किया जाय और वह लिंग योनि से कुछ बड़ा तथा बलवान् होना चाहिये x | '
* यथा-" इति मंत्रेण गोमय- गोमूत्र क्षीर-दधि-सर्पिःकुशोदकेपनं सम्प्रदास्य श्रीगन्धकुंकुम कस्तूरिकायनुलेपनं कुर्यात् ।"
1. 'योनिं पश्यन् ' पदों का यह अर्थ भी अनुवादकों ने नहीं दिया ।
* इसके बाद दोनों की संतुष्टि तथा इच्छापूर्ति पर योनि में वीर्य के सींचने की बात कही गई है, और यह कथन दो पद्यों में है, जिनमें पहला 'संतुष्टो भाषा भर्ता' नाम का पद्म मनुस्मृति का वाक्य
है और दूसरा पद्य निम्न प्रकार है
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