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[ ५० ] गर्भाधानादयो भव्यास्त्रित्रिंशत्सुक्रिया मताः ।
वक्ष्येऽधुना पुराणे तु याः प्रोक्ता गणिभिः पुरा ॥३॥ इस वाक्य के द्वारा यह प्रतिज्ञा की गई है कि प्राचीन आचार्य महोदय ( जिनसेन )ने पुराण ( श्रादिपुराण ) में जिन गर्भाधानादिक ३३ क्रियाओं का कथन किया है उन्हीं का मैं अब कथन करता हूँ।' यहाँ बहुवचनान्त 'गणिभिः ' पदका प्रयोग वही है जो पहले प्रतिज्ञा-वाक्य में जिनसेनाचार्य के लिये उनके सम्मानार्थ किया गया है और उसके साथ में 'पुराणे ' * पद का एकवचनान्त प्रयोग उनके उक्त पुराण ग्रन्थ को सूचित करता है। और इस तरह पर इस विशेष प्रतिज्ञा-वाक्य के द्वारा यह घोषणा की गई है कि इस ग्रंथ में गर्भाधानादिक क्रियाओं का कथन जिनसेनाचार्य के आदिपुराणानुसार किया जाता है । साथ ही, कुछ पद्य भी आदिपुराण से इस पद्य के अनन्तर उद्धृत किये गये हैं, ' व्युष्टि' नामक किया को
आदिपुराण के ही दोनों पद्यों ( 'ततोऽस्य हायने' आदि ) में दिया है और 'व्रतचर्या 'तथा ' व्रतावतरण ' नामक कियाओं के भी कितने ही पद्य ('व्रतचर्यामहं वक्ष्ये' आदि) आदिपुराण से ज्यों के त्यों उठाकर रखे गये हैं । परंतु यह सब कुछ होते हुए भी इन क्रियाओं का अधिकांश कथन आदिपुराण अथवा भगवजिनसेनाचार्य के वचनों के विरुद्ध किया गया है, जिसका कुछ खुलासा इस प्रकार है:
* पं० पन्नालालजी सोनी ने 'पुराणे' पद का जो बहुवचनान्त अर्थ “शास्त्रों में" ऐसा किया है वह ठीक नहीं है । इसी तरह 'गणिभिः ' पद के बहुवचनान्त प्रयोग का प्राशय भी पाप ठीक नहीं समझ सके और आपने उसका अर्थ " मद्दर्षियों ने" दे दिया है।
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