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[ ६३ ] (झ) इस पाठवें अध्याय में, और आगे भी, आदिपुराण वर्णित क्रियाओं के जो भी मंत्र दिये हैं वे प्रायः सभी आदिपुराण के विरुद्ध हैं । श्रादिपुराण में गर्भाधानादिक क्रियाओं के मंत्रों को दो भागों में विभाजित किया है--एक 'सामान्यविषय मंत्र' और दूसरे 'विशेष विषय मंत्र' । 'सामान्यविषय मंत्र' वे हैं जो सब क्रियाओं के लिये सामान्य रूप से निर्दिष्ट हुए हैं और विशेषविषय' उन्हें कहते हैं जो खास खास क्रियाओं में अतिरिक्त रूप से नियुक्त हुए हैं । सामान्यविषय मंत्र १ पीठिका, २ जाति, ३ निस्तारक, ४ ऋषि, ५ सुरेन्द्र, ६ परमराज और ७ परमेष्ठि मंत्र-भेद से सात प्रकार के हैं। इन सबों को एक नाम से 'पीठिका-मंत्र' कहते हैं; क्रिया-मंत्र, साधन-मंत्र तथा माहति-मंत्र भी इनका नाम है और ये 'उत्सर्गिक-मंत्र' भी कहलाते हैं, जैसाकि आदिपुराण के निम्न वाक्यों से प्रकट है ।
एते तु पीठिका मंत्राः सप्त या द्विजोत्तमैः । पतैः सिद्धार्चनं कुर्यादाधानादिक्रियाविधौ ॥ ७ ॥ क्रियामंत्रास्त एतेस्युराधानादिक्रियाविधौ । सूत्रे गणधरोद्धार्ये यान्ति साधनमंत्रताम् ॥ ७ ॥ संध्यास्वग्नित्रये देवपूजने नित्यकर्मणि । भवन्त्याहुतिमंत्राश्च त पते विधिसाधिताः ॥ ७ ॥ साधारणास्त्विमे मंत्राः सर्वत्रैव क्रियाविधी। यथासंभवमुन्नेष्ये विशेषविषयांश्च तान् ।। ६१ ॥ क्रियामंत्रास्त्विह या ये पूर्वमनुवर्णिताः । सामान्यविषयाः सप्त पीठिकामंत्ररूढयः ।। २१५ ।। ते हि साधारणाः सर्वक्रियासु विनियोगिनः । तत उत्सर्गिकानेतान्मंत्रान्मत्रविको विदुः ॥ २१६ ॥ विशेषविषया मनाः क्रिसूक्तासु दार्शताः ।
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