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वक्त, और घर पर हमेशा ही ठंडे जल से स्नान न करना चाहिये और न वैसे स्नान किये बिना तिनक ही धारण करना चाहिये ।
यहाँ तेल की मालिश के अवसर पर गर्म जल से स्नान की बात तो किसी तरह पर समझ में आ सकती है परन्तु घर पर सदा ही गर्म जल से स्नान करने की अथवा ठंडे जल से कभी भी स्नान न करने की बात कुछ समझ में नहीं आती । मालू नहीं उसका क्या कारण है और वह किस भाधार पर अवलम्बित है ! क्या ठंडे जल से स्नान नदी-सरोवरादिक तीयों पर ही होता है अन्यत्र नहीं ? और घर पर उसके कर लेने से जलदेवता रुष्ट हो जाते हैं ? यदि ऐसा कुछ नहीं तो फिर घर पर ठंडे जल से स्नान करने में कौन बाधक है ! ठंडा नन स्वास्थ्य के लिये बहुत लाभदायक है और गर्म जल प्रायः रोगी तथ अशक्त गृहस्थों के लिये बतलाया गया है । ऐसी हालत में भट्टारकजी की उफ्त आज्ञा समीचीन मालूम नहीं होती--वह जैनशासन के विरुद्ध जंचती है। लोकव्यवहार भी प्रायः उसके विरुद्ध है । लौकिक जन, भूतु भादि के अनुकूल, घर पर स्नान के लिये ठंडे तथा गर्म दोनों प्रकार के जलका व्यवहार करते हैं।
हाँ, हिन्दुओं के धर्मशास्त्रों से एक बात का पता चलता है और वह यह कि उनके यहाँ नदी आदि तीयों पर ही स्नान करने का विशेष माहाल्य है, उसीसे स्नान का फल माना गया है, अन्यत्र के स्नान से महर शरीर की शुद्धि होती है, स्नान का जो पुण्यफल है वह नहीं मिलता और इसलिये उनके यहाँ तीर्याभाव में भयवा तीर्थ से बाहर (घर पर ) उष्ण जल से स्नान करलेने की भी व्यवस्था की गई है। सम्भव है उसका एकान्त लेकर ही मट्टारकजी को यह माज्ञा जारी करने की सूकी हो, जो मान्य किये जाने के योग्य नहीं । अन्यथा, हिन्दुओं के यहाँ भी दोनों प्रकार के स्लान का विधान पाया जाता है । यथाःShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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