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है । श्रीपद्मनन्दि आचार्य ने भी अपने कर्मों से दूर रहने का अथवा उनके त्याग का सम्यग्दर्शन मैला तथा व्रत खंडित होता हो । यथा:
तं देशं तं नरं तत्स्वं तत्कर्माणि च नाश्रयेत् । मलिनं दर्शनं येन येन च व्रतखण्डनम् ॥ २६ ॥
लोक में, हिन्दूधर्म के अनुसार, पीपल को विष्णु भगवान का रूप माना जाता है । विष्णु भगवान ने किसी तरह पर पीपल की मूर्ति धारण की है, वे पीपल के रूप में भूतल पर अवतरित हुए हैं, और उनके आश्रय में सत्र देव कर रहे हैं; इसलिये जो पीपल की पूजा करता है वह विष्णु भगवान की पूजा करता है, इतना ही नहीं, किन्तु सर्व देवों की पूजा करता है - ऐसा हिन्दुओं के पाद्मांत्तरखण्डादि कितन ही ग्रंथों में विस्तार के साथ विधान पाया जाता है । इसीसे उनके यहाँ पीपल के पूजने का बड़ा माहात्म्य है और उसका सर्व पापों का नाश करने आदि रूप से बहुत कुछ फल वर्णन किया गया है # । और यही
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*इस विषय के कुछ थोड़े से वाक्य नमूने के तौर पर इस प्रकार हैं। अश्वत्थ रूपो भगवान् विष्णुरेव न संशयः । " अश्वत्थपूजको यस्तु स एव हरिपूजकः । अश्वत्थमूर्तिर्भगवान्स्वयमेव यतो द्विज ॥" ' वदाम्यश्वत्थमाहात्म्यं सर्वपापप्रणाशनम् | साक्षादेव स्वयं विष्णुरश्वत्थोऽस्खिलविश्वराट् ॥" अश्वत्थपूजितो येन पूजिताः सर्वदेवताः । अश्वत्थच्छेदितो येन छेदिताः सर्व देवताः ॥” " अश्वत्थं सचयेद्विद्वान्संप्रदक्षिणमादिशेत् । पापोपहतमर्त्यानां पापनाशो भवेद् ध्रुवम् "
- शब्दकल्पद्रुम ।
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श्रावकाचार में उन सब उपदेश दिया है जिनसे
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