________________
[८३]
को यहाँ पर यह जानने की जरूर इच्छा होगी कि वह अघोरमंत्र कौनसा है जिससे भट्टारकजी ने विवाह के अवसर पर होम करने का विधान किया है और जिसे ' कुर्याद् होम सन्मंत्रपूर्वकम् ' वाक्य के द्वारा 'सन्मंत्र' तक लिखा है । भट्टारकजी ने इस मंत्र को नहीं दिया परंतु वह जैन का कोई मंत्र न हो कर वैदिक धर्म का एक प्रसिद्ध मंत्र जान पड़ता है जो हिन्दुओं की विवाह-पुस्तकों में निम्न प्रकार से पाया जाता है और जिसे ' नवरत्नविवाह पद्धति' के छठे संस्करण में अथर्वन् वेद के १४ वें काएड के 8 वें अनु० का १८ वाँ मंत्र लिखा है"ॐ अघोरचक्षुरपतिज्यधि शिवा पशुभ्यः सुमनाः सुवर्चा
चीरसूदेवकामास्योना शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ।"
इस सब विधिविधान से पाठक सहज ही में समझ सकते हैं कि भट्टारकजी हिन्दू धर्म की तरफ कितने झुके हुए थे अथवा उनके संस्कार कितने अधिक हिन्दू धर्म के आचार विचारों को लिये हुए थे और वे किस ढंग से जैन समाज को भी उसी रास्ते पर अथवा एक तीसरे ही विलक्षण मार्ग पर चलाना चाहते थे। उन्होंने इस अध्याय में वर का मधुपर्क
* यह मधु ( शहद ) का एक मिक्सचर (सम्पर्क) होता है, जिसमें दही और घी भी मिला रहता है। हिन्दुओं के यहाँ दान-पूज. नादि के अवसरों पर इसकी बढ़ी महिमा है। भट्टारकजी ने मधुपर्क के लिये (मधुपर्कार्थ) एक जगह वर को महज़ दही चटाई है परंतु सोनीजी को आपकी यह फीकी दही पसन्द नहीं पाई और इसलिये उन्होंने पीछे से उसमें शक्कर' और मिलादी है और इस तरह पर मधु के स्थान की पूर्ति की है जिसका खाना जैनियों के लिय वर्जित है । यहाँ मधुपर्क के लिये दही का चटाया जाना हिन्दुओं की एक
प्रकार की नकल को साफ जाहिर करता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com