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[५१ ] (क) भगवजिनसेन ने गर्भाधानादिक क्रियाओं की संख्या ५३ दी है और साथ ही निम्न पद्य द्वारा यह प्रतिपादन किया है कि गर्भाधान से लेकर निर्वाण तक की ये ५३ क्रियाएँ परमागम में 'गर्भान्वय क्रिया' मानी गई हैं
प्रयांचाशदेता हि मता गर्भावयक्रियाः ।
गर्माधानादिनिर्वाणपर्यन्ताः परमागमे । परन्तु जिनसेन के वचनानुसार कथन करने की प्रतिज्ञा से बंधे हुए भट्टारकजी उक्त क्रियाओं की संख्या ३३ बतलाते हैं और उन्होंने उन ३३ के जो नाम दिये हैं वे सब भी वे ही नहीं हैं जो आदिपुराण की ५३ क्रियाओं में पाये जाते हैं । यथा:
प्राधानं प्रीतिः सुप्रीतिधृतिर्मोदः प्रियोद्भवः । नामकर्म बहिर्यानं निषचा प्राशनं तथा ॥४॥ व्युष्टिश्च केशवापस लिरिसंस्थानसंग्रहः । उपनतिर्वतचर्या बतावतरणं तथा ॥ ५॥ विवाहो वर्षलाभश्व कुलचर्या गृहीशिता। प्रशान्तिश्च गृहत्यागो दीक्षा जिनरूपता ॥६॥ मृतकस्य च संस्कारो निर्वाण पिण्डदानकम् । श्राद्धं च सूतकद्वैतं प्रायश्चित्तं तवैव च ॥७॥ तीर्थयात्रेति कविता द्वात्रिंशत्रुपया क्रियाः।
प्रवाशवधर्मस्य देशनाख्या विशेषतः ॥ ८ ॥ इनमें से पहले तीन पच तो आदिपुराण के पद्य हैं और उनमें गर्भाधान को बादि लेकर २५ क्रियाओं के नाम दिये हैं, बाकी के दो पब भहारकजी की प्राय: अपनी रचमा जान पड़ते हैं और उनमें र क्रियानों के नाम देकर तेतीस क्रियामों की पूर्ति की गई है। और
यहीं से प्रकृत विषय के विरोध अथवा खल का आरम्भ हुआ है। इन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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