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कामदेव होकर भी निष्काम वीतराग साधन से वे स्वतः पूर्णकाम हुए हैं । पुराण पुरुष होकर भी, इस विग्रह में वे चिर नवीन हैं । वज्र की तरह कठोर होकर भी वे पाँखुरी की तरह मृदुल हैं । अपराजेय शक्ति के स्वामी होकर भी अनन्त करुणा के धाम हैं । नित- नूतन आकर्षण से भरा उनका दिव्य सौन्दर्य, दर्शक की दृष्टि को बाँध ही लेता है ।
महायोगी की अखण्ड एकाग्रता से मण्डित होकर भी, वे निरन्तर बाल-सुलभ मुस्कान बिखेरते रहते हैं । अनन्त मौन में लीन उनकी यह जीवन्त प्रतिमा, प्रतिक्षण आश्वासन देती रहती है कि - बस, अब वे बोलने ही वाले हैं ।
और चेतन, प्रकृति और पुरुष, सभी यहाँ उन महिमामय की दिव्य महिमा से सदा अभिभूत रहते हैं । इन्द्रधनुष उनका भामण्डल बन जाता है । मेघ-मालाएँ उनका मस्तकाभिषेक करती हैं। उनचासों पवन उनके चरणों में अर्ध्य चढ़ाते हैं । दामिनी उनकी आरती उतारती हैं । नक्षत्र निरन्तर परिक्रमा के द्वारा उन्हें प्रकाशित करते हैं । स्वर्ग-पटलों पर बैठे-बैठे ही देवगण नित्य उनका दर्शन करते हैं ।
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धूलि और धुएँ के बवण्डर, कभी उन निरञ्जन की देह को मलिनता नहीं दे पाते । पश्चिम की समुद्री वायु उन निर्लेप को अपने रूप-रस से प्रभावित नहीं कर पाती । नभचर उन्हें मलिन नहीं करते । थलचर कभी उनका अविनय नहीं करते ।
मैं साक्षी हूँ, उन त्रैलोक्यनाथ की ऐसी लोकोत्तर मर्यादा का सहज निर्वाह यहाँ सहस्र वर्षों से हो रहा है । मुझे विश्वास है कि सहस्रों वर्षों तक उनकी यह मर्यादा अटूट ही रहेगी । तव तुम्हीं कहो पथिक ! ऐसी अलौकिक छवि के दर्शन से कैसे किसी की आँखें अघायेंगी ? जनम-जनम तक यह मनमोहन रूप निहारकर भी, निहारते रहने की आकांक्षा तो बढ़ने ही वाली है । उस तृषा की तृप्ति कभी सम्भव नहीं है ।
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अपने बाल्यकाल से सुनता आया हूँ - भगवान् के जन्म के समय उनके रूप का आकर्षण देवेन्द्र को विह्वल कर देता है । वे सहस्र नेत्र होकर उस रूप - सुधा का पान करते हैं, पर अतृप्त ही रहते हैं । तीर्थंकरों का वह रूप देख पाना मेरे भाग्य में नहीं था । पर मेरा भाग्य इन्द्र के भाग्य से कम भी नहीं है, तभी तो गोमटेश की यह मनोहारी छवि यहाँ मेरे नयनपथ पर अवतरित हुई । दर्शन पाकर मैं तो धन्य हो गया । होता, वैसी विक्रिया मेरे पास होती, तो मैं भी सहस्रों नेत्रों से इस दिव्य रूप को निहारकर तृप्त होने का प्रयास करता । पर इससे क्या, दर्शन की अभिलाषा तो मेरी भी वैसी ही अदम्य है । इन्द्र ने सहस्र
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२ / गोमटेश - गाथा