Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बिन्दी लिखना। इसी प्रकार से मागे एक ही पंक्ति में सूक्ष्म पर्याप्नक वायुकायिक, तेजस्कायिक, प्रकायिक, पृथ्वी कायिक, पुन: बादर पर्याप्त वायुकायिक, तेजस्कायिक, अप्कायिक, पृथ्वीकायिक, निगोद. प्रतिष्ठित प्रत्येक जीवों के अपने-अपने जघन्य अवगाह स्थान को लेकर अपने-अपने उत्कृष्ट अवगाह स्थान पर्यन्त प्रत्येक के दो-दो स्थान हैं। उनकी चार-चार बिन्दी लिखना । इसी प्रकार प्रतिष्ठित प्रत्येक के उत्कृष्ट अवगाहन स्थान से प्रागे उसी पंक्ति में ही अप्रतिष्ठित प्रत्येक पर्याप्तक के जत्रन्य अवगाहन स्थान से लेकर उत्कृष्ट अवगाहनस्थान पर्यन्त तेरह स्थानों की छब्बीस बिन्दिया लिखना । सो पर्याप्त सूक्ष्म निगोंद का आदि स्थान सतरहा है। इसलिए सोलहवें स्थान को दी विन्दु के नीचे को छोड़कर सतरहवें तथा अठारहवें स्थान की चार बिन्दी लिखना। सूक्ष्म वायु, पर्याप्तक का आदि स्थान बीसवाँ है इसलिए उसी पंक्ति में उन्नीसवें स्थान के दो बिन्दी के नीचे को छोड़कर बीसवां-इक्कीसवां दो स्थानों की चार बिन्दी लिखना। इसी तरह बीच-बीच में एक स्थान की दो-दो बिन्दी के नीचे को छोड़-छोड़कर सूक्ष्म पर्याप्त तेजस्काय आदि के दो-दो स्थानों की चार-चार बिन्दी लिखना। उसी पंक्ति में प्रतिष्ठित प्रत्येक के पचास से लेकर स्थान हैं। इसलिए पचासवें स्थान की बिन्दी से लेकर तेरह स्थानों की छब्बीस बिन्दी लिखना । यह सब एक पंक्ति में कहा है । उस पंक्ति के नीचे-नीचे अठारहवीं, उन्नीसवीं, बीसवीं, इक्कीसवीं, पंक्ति में पर्याप्त दोइन्द्रिय, ते इन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जीवों का अपने-अपने जघन्य अवगाहन स्थान से लेकर अपने-अपने उत्कृष्ट अवगाहस्थान पर्यन्त ग्यारह, पाठ, पाठ, दस स्थानों की क्रम से बाईस, सोलह, सोलह और बीस विन्दी लिखना । सो पर्याप्त दोइन्द्रिय के पावन से लेगा धाम हैं। हालिए स्ताद्दी पंक्ति में अप्रतिष्ठित प्रत्येक की जो छब्बीस बिन्दी लिखी थीं, उनके नीचे प्रादि की पचासवें स्थान की दो बिन्दी के नोचे को छोड़कर आगे बाईस हिन्दी लिखना । इसी तरह नीचे-नीचे आदि की दो बिन्दी के नीचे को छोड़कर बावनवे, तरेपनवे, चौवन स्थानों की बिन्दी से लगाकर क्रम से सोलह,सोलह बीस बिन्दी लिखना। इस प्रकार मत्स्य-रचना में मध्म निगोद लमध्यपर्याप्तक के जघन्य अवगास्थान से लगाकर संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त के उत्कृष्ट अवगाहन म्थान पर्यन्त सब अवगाहना स्थानों में से प्रत्येक के दो-दो शुन्यों की विवक्षा होने से उन स्थानों की गणना के आश्रय से हीन अधिक भाव को लिये हुए शुन्य स्थापना का क्रम अनादिनिधन प्रागम में कहा है। इसके अनुसार रचना करने पर समस्त अवगाहन की रचना मत्स्याकार होती है ।
सारः -मत्स्य-रचना के उक्त विवरण का संक्षिप्तसार इस प्रकार है-सूक्ष्म अपर्याप्तक निगोद की जघन्य अवगाहना से उसके उत्कृष्ट अवगाह पर्यन्त गुगाकार सोलह हैं, पूनः एक अधिक है। इस प्रकार सतरह स्थानों के प्रत्येक स्थान के दो शून्य के हिसाब से चौंतीस शून्य भवसे ऊपर की पंक्ति में लिखने चाहिए। उसके नीचे सूक्ष्म अपर्याप्तक वायुकायिक के जघन्य से उत्कृष्ट पर्यन्त उन्नीस स्थानों के अइनीम शून्य लिखने चाहिए। इसी तरह मुक्ष्म अपर्याप्त तेजस्कायिक से लेकर प्रतिष्ठित प्रत्येक पर्यन्त प्रत्येक के दो स्थान अधिक होने से प्रत्येक पंक्ति में चार शुन्य अधिक होते हैं। इस
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१. पवल ११ भून ५० से ७६ तक पृष्ट ६० मे ६६। २ धवल ११ भूत्र ८० से नक पृष्ट ६ मे ६८ । ३. , , ,, ३२ में ४८ पृष्ठ ५६ मे ५६ । ४, , , ।। ३२ से ५१ पृष्ट ५६ स ६० ।
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