Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 16
________________ सत्रहवीं आदि ५ पंक्तियों द्वारा इन सभी पर्याप्त जीवों की जघन्य-उत्कृष्ट कुल ३२ अवगाहनामों का चित्रण किया गया है। जिससे पृष्ठ२१ वाला चित्र बन जाता है जो कि इस मूल ग्रन्थ के पृष्ठ १५४ पर प्रदन चित्र-रचना के भावों के अनुरूप ही है। * मत्स्य-रचना के प्रस्तुत चित्र का खुलासा * अब सब अवगाह-स्थानों के स्थापन का क्रम कहते हैं। प्रथम सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तक के जघन्य अवगाहन स्थान से लेकर उसके उत्कृष्ट अवगाहनस्थानपर्यन्त सोलह स्थान तो गुणित क्रम हैं और एक स्थान साधिक है। एक-एक स्थान को सूचक संदष्टि दो शून्य है। सो चौंतीस शुन्य दो-दो बिन्दी में बराबर लिखते हुए सतरह जगह लिखना । यहाँ सूक्ष्मनिगोंदलब्ध्यपर्याप्त का जघन्य स्थान पहला है और उत्कृष्ट अठारहवाँ है । किन्तु गुणकारपने की अधिकतारूप अन्तराल सतरह ही हैं । इसनिए सतरह का हो ग्रहण किया है। ऐसे ही आगे भी समझना । इसी तरह उक्त पंक्ति के नीचे दूसरी पंक्ति में सुश्मलध्यपर्याप्तक वायुकायिक जीवके जघन्य अवगाहनस्थान से लेकर उसी के उत्कृष्ट प्रवगाहनस्थान पर्यन्त उन्नीस स्थान हैं। उनकी अड़तीस बिन्दी लिखना । यह दूसरा स्थान होने से ऊपर की पंक्ति में प्रथम स्थान की दो बिन्दी छोड़कर द्वितीय स्थान की दो बिन्दी से लेकर आगे बराबर अडतीम बिन्दी लिखना। तीसरी पंक्ति में सूक्ष्म लब्ध्यपर्याप्तक तेजस्कायिक के जघन्य अवगाहना से उत्कृष्ट अवगाहना पर्यन्त इक्कीस स्थान हैं। उनकी बयालीस बिन्दी लिखना। सो यह तीसरा स्थान होने से इससे ऊपर की दूसरी पंक्ति के दूसरे स्थान की दो बिन्दी के नीचे के स्थान को छोड़कर तीसरे स्थान की दो बिन्दी मे लेकर बयालीस बिन्दी दो-दो करके इक्कीस स्थानों में लिखना। इसी तीसरी पंक्ति के नीचे चौथी पंक्ति में सूक्ष्म लब्ध्यपर्याप्त प्रकायिक के जघन्य अवगाहन से लेकर उत्कृष्ट अवगाहन पर्यन्न तेईम स्थानों की छियालीस बिन्दी लिखना । यह चौथा स्थान होने से तीसरे स्थान की दो बिन्दी के नीचे को छोड़कर चौथे स्थानकी दो बिन्दी से लेकर छियालीस निन्दी लिखना । इसी तरह इस चतुर्थ पंक्ति के नीचे पांचवीं पंक्ति में सूक्षमलब्ध्यपर्याप्त पृथ्वीकायिक के जघन्य अवगाहन से लेकर उत्कृष्ट अवगाहनपर्यन्त पच्चीस स्थान हैं। उनकी पचास बिन्दी लिखना । सो यह पाँचवाँ स्थान होने में चौथे स्थान को भी दो बिन्दी के नीचे को छोड़कर पांचवें स्थान की दो बिन्दी से लेकर पचास बिन्दी लिखना। इसी तरह उक्त पंक्ति के नीचे छठी, सातवीं, आठवी, नवमी, दशमी, ग्यारहवीं, चारहवों, तेरहवीं, चौदहवीं, पन्द्रहवीं और सोलहवीं पंक्ति में बादरलध्यपर्याप्तक वायुकाय, तेजकाय, अकाय, पृथ्वीकाय, निगोद, प्रतिष्ठित प्रत्येक, अप्रतिष्ठित प्रत्येक, दो इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, 'चोइन्द्रिय और पंचेन्द्रिय इन ग्यारह की अपने-अपने जघन्य स्थान से लेकर उत्कृष्ट स्थान पर्यन्त क्रम से सत्ताईस, उनतीस, इकतीस, तेतीस, पतीस, सैंतीस, छियालीस, चवालीस, इकतालीस, इकतालीस तेतालीस स्थान हैं। इनके चौबन, अठावन, बासठ, छियासठ सत्तर, चौहत्तर, बयासी, अठासी, बयासी, बयासी और छियासी विन्दी लिखना। सो ये स्थान छठे सातवें प्रादि होने से ऊपर की पंक्ति के आदि स्थान की दो-दो बिन्दी के नीच को छोड़कर छठे सातवें आदि स्थान को दो बिन्दी से लेकर पंक्ति में लिखना। इसी प्रकार उस पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक की पंक्ति के नीचे सतरहवीं पंक्ति में सूक्ष्म निगोद पर्याप्त के जघन्य अबगाह्न स्थान से लेकर उत्कृष्ट अवगाह पर्यन्त दो स्थान हैं ।' उनकी चार १. धवल ११ सूर्य ४७ में ४६ पृष्ठ ५९-६०

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