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राग रामकली ऋषभदेव ऋषदेव सहाई॥टेक अजित अजितरिपु संभव संभव, अभिनन्दन नन्दन लव लाई ।। ऋषभ.।। सुमति सुमति भवि पदम पदम अलि, देत सुपास सुपास भलाई। चितचकोरचंदा चंदप्रभ, पुहपदन्त पुहपनि भजि भाई! ।। ऋषभ. ॥ १॥ शीतल शीतल जड़ता नासैं, श्रेयान श्रेयान जोत जगाई। वासुपूज्य वासव पद पूजे, विमल विमल कीरति जग छाई ॥ ऋषभ.॥२॥ गुन अनन्त अघ अन्त अनन्त हैं, धरम धरमवरषा वरषाई। शान्ति शान्त कुंथ्यादि जन्तुपर, कुंथुनाथ करुणा करवाई।। ऋषभ. ।। ३ ।। अरह अरहविधि मल्ल मल्लिवर, मुनिसुव्रत मुनि सुव्रत दाई। नमि नमि सुरनर नेमि धरमरथ, नेमिप्रभू का भव-काई ।। ऋषभ.॥४॥ पास पास छेदी चहुँगतिकी, महावीर महावीर बड़ाई। 'द्यानत' परमानंद पद कारन, चौवीसी नामारथ गाई॥ ऋषभ. ।। ५ ।।
हे ऋषभदेव, हे मुनिनाथ! आप ही सहायक हैं।
हे अजितनाथ! अजेय (जिसे जीता न जा सके ऐसा) शत्रु भी आपको जीत न सका। __ हे सम्भवनाथ! आपके स्मरण से भव में समता आती है; संयोग बनते हैं। हे अभिनन्दन! आपका रूप इन्द्र की वाटिका की छटा के समान मनोहारी व मुग्ध करनेवाला है।
हे सुमतिनाथ! आप सुमति के देनेवाले हैं। हे पद्मप्रभ! आप भव्यजनरूपी भ्रमरों के लिए कमल के समान हैं । हे सुपार्श्व आपके समीप सब का भला होता है . आपका सामीप्य सुखदायक है । हे चन्द्रप्रभ! आप मेरे चित्तरूपी चकोर को
द्यानत भजन सौरभ