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(२)
राग परज
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माई! आज आनन्द हैं या नगरी ॥ टेक॥ ....गज-गमनी शशि-वदनी तरुनी, मंगल गावत हैं सिगरी ॥१॥माई.।।
नाभिरायघर पुत्र भयो है, किये हैं अजाचक जाचक री॥२॥माई.।। 'द्यानत' धन्य कूँख मरुदेवी, सुर सेवत जाके पग री॥३॥माई.।।
हे माई ! इस नगर में आज अतिशय आनन्द व्याप्त है। हथिनी की तरह मस्त होकर मदमाती चाल से चलनेवाली, चन्द्रमा के मुख के समान सुन्दर युवतियाँ मिलकर मंगल गा रही हैं।
श्री नाभिराजा के घर पुत्र उत्पन्ना हुआ है, इस अवसर पर जो माँगनेवाले हैं अर्थात् जो याचक हैं, उनको भी अयाचक बना दिया है। अर्थात् सभी को इच्छानुसार देकर सन्तुष्ट किया जा रहा है जिससे वे फिर याचक न रहें ।
द्यानतराय कहते हैं उस मरुदेवी की कूख धन्य है, देवगण भी उनके चरणों की सेवा करते हैं।
द्यानत भजन सौरभ