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पर्युषण पर्व और हमारा कर्तव्य
किरण १]
की बात है । इन दिनोंमें घर्नकी व्याख्या की जायगी, धर्म का मर्म और रहस्य समझाया जायगा । हम बड़े श्रानन्द और चाव से षोडश कारण भावना, दशलक्षण धर्म तथा रत्नत्रयादि धर्मका मर्म सुनेंगे और सुनायेंगे, मंडल विधान आदि करेंगे, व्रत-उपवास रक्वेंगे, पर देखना यह है कि इस धर्मके महत्वको अपने जीवन में कहाँ तक उतारेंगे। इम तो बराबर देखते रहे हैं कि प्रतिवर्ष पर्यापण वर्व श्राता है, श्रष्टाहिका यादि पर्व भी आते हैं, बड़े बड़े विधान होते हैं, रथ, गजरथ निकाले जाते हैं, वेदियाँ रचाई जाती है, चिम्ब प्रतिष्ठाएँ कराई जानी है और बड़े-बड़े पंडित जन गला फाड़ फाड़ कर धर्मका मर्म समझते रहते हैं; तो भी हमारा समाज सच्चे अर्थों में हिंसाका प्रांतपालक नहीं हो पाता - धर्मको जावनका अंग नहीं बना पाता, आपसी कलह और राग द्वेषको नहीं छोड़ता, उलटा मिद्धक्षेत्र और अतिशय क्षेत्रों के नाम पर हर क्षण मुकदमेबाजी करता रहता है । क्या यही धर्मध्यान, पूजा विधान, और व्रत-उपवासका फल है ?
हमारा धर्म और धर्मेक सिद्धान्त यद्यपि हमें कर्तव्यकी ओर अग्रसर करते हैं, हमें मानवताका पाठ पढ़ाते हैं, हमारे हृदयसे बर्बरता और उद्दंडनाको हटाकर हमारी श्रात्माको शुद्ध और निर्मल बनाते हैं पर हम उन सिद्धान्नोंको अपने जीवन में नहीं अपनाते, अपने कर्तव्यको नहीं पहचान पाते ।
धर्म हमें श्रेणीबद्ध कर्तव्य की ओर अग्रसर करता है ।
जैन विज्ञान की आवश्यकता
'अनेकान्त ' कार्यालयके लिये पक अनुभवी विद्वान् कार्यकर्ताकी आवश्यकता है। वेतन योग्यतानुसार । आने के इच्छुक सज्जन निम्न पते पर पत्रव्यवहार करें। साथमें कार्यका अनुभव और कहाँ कार्य किया है यह भी लिखें ।
कौशलप्रसाद जैन
प्रा० व्यवस्थापक
कोर्टरोड सहारनपुर यू० पी०
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कुलके प्रति हमारा क्या कर्तव्य है ? समाजके प्रति हमारा क्या कर्तव्य है ? देश और धर्मके प्रति हमारा क्या कर्तव्य है ? इत्यादिका रहस्य हमें हमारे सिद्धान्त भलीभाँति समझा देते हैं । किन्तु फिर भी हम अपने कर्तव्यका पालन नहीं कर पाते, यह बड़े खेदका विषय है !
हमारा कर्तव्य है कि हम बीम और तेरह तथा श्वेनाम्बर और दिगम्बर के भेद-भाव को छोड़कर समूचे जनसमाज को सुहदरूपसे संगठित करें, समाजमें नव जीवनका संचार करें - नूतन उत्साह, स्फूर्ति और जागृति की लहरें तरंगित करे; धर्म और समाजकी रक्षा करते हुए देशोत्थान के कार्यों में पूर्ण सहयोग देवें, ममाज में वास्तविक जैन सभ्यता और संस्कृतिका प्रसार करें, सच्चे तौर से अहिंसा के प्रतिपालक बनकर विश्वको अपना कुटुम्ब समझे; बाल, अनमेल और वृद्ध विवाह आदि कुरीतियोंको समूल नष्ट करें, शिक्षका प्रचार करें, समाजकी विधवाओं और दरिद्री भाइयोंकी तन-मन-धन से सेवा करें। यही सच्चा धर्म है । जो ऐसा नहीं करते और धन-संपन्न होकर भी अपने ही समाजके उन स्त्री-पुरुषों, बालकों तथा विधवाओंों की सहायता से मुख मोड़े रहते हैं जिनके पास ब्यानेको अन्न और पहननेको वस्त्र नहीं वे निःसन्देह अपने कर्तव्य की अवहेलना कर रहे है । आशा है जैन बान्धव धर्मको दूरसे ही अर्ध न चढ़ाकर उसे जीवनका साथी बनाएँगे और इस तरह अपने कर्तव्य का पालन करके सच्चे प्रथमं पर्युषण पर्वका स्वागत करेंगे ।
पुराने ग्राहकोंसे
समयपर ग्राहकों के पास पहुँचाने की सीक्रतावश हम कितने ही ग्राहकोंके पास यह किरण बी० पी० से नहीं भेज रहे हैं । अतः जिन बन्धुओंके पाश बी०पी० न पहुँचे उनसे चन्देके ४) रु० तुरन्त "वीरसेवामंदिर सरसावा जि० सहारनपुर के पते पर मनीआर्डरसे भेज देनेकी प्रार्थना है। जिससे उन्हें ) का लाभ रहेगा और कार्यालय भी दिक्त से बच जायगा ।
व्यवस्थापक