________________
किरण १]
चरवाहा
मुँह उसका भी आज प्रसन्न है-अपेक्षाकृत ! बोली- खाफर जाना-अपूर्व भोजन ! नहीं, पाँव नही 'देख, मैं कुँएसे पानी लेने जा रही हूँ ! तू यहीं छोडूंगा'...."हाँ!' रहना-बाहर ! आकर खीर खिलाऊँगी-अच्छा ?' शावास! और वह बढ़ी-एक डग, दो डग !...
भाग्यशाली अकृत ! धन्य!!! फिर मुड़कर बोली-और हाँ, इस बीचमें अगर
कि उसी वक्त मिष्टदाना आगई ! घड़ा उतारकर, कोई तेरे भाग्यसे साधु आजाँय, तो उन्हें ठहराना,
उसने विधिपूर्वक पड़गाह लिया-उन्हें ! मैं भी अभी आती हूँ-वैसे ! जानता है-वे साधु,
निर्विघ्न आहार! जो एक धजीर तक नहीं पहनते-ओढ़ते ! जो जमीन
स्वर्ग-दाता महा-दान !! महापुण्य !!! सोधते हुए चलते हैं ! उन्हें खिलानेका बड़ा पुण्य
अकृत देखता रहा-निर्निमेष ! और सोचता बड़ा फल होता है! समझा...?'
रहा-'मेरे घर महामुनि आहार ले रहे हैं-मुझसे अकृतने प्रसन्नतापूर्वक कहा-खूब !'-शायद बढ़कर भाग्यवान कोन ? धन्य हूँ मैं, और मेरा आज बड़े-छोटेकी व्याख्या अकृत अब खच समझने लगा' का दिन! है!
महा-मुनि आहार ले, तपो-भूमिको लौट गए। तो
मिष्टदानाने दुलारपूर्वक अकृतको भोजन कराया, खुद नरकमें स्वर्गके दर्शन !
खाया ! और सबके खा-पी चुकनेपर देखा वो खीर
पात्र जैसेका तैसा, भरा हुया ! सौभाग्य !
अचरज !!! कि कुछ ही समय उपरान्त अकृतको एक परम- लेकिन तत्काल ही मिष्टदानाको यह चेत हो गया, दिगम्बर महामुनि श्राते हुए दिखाई दिए ! उसका कि ऋषिवर अक्षीणऋद्धिके धारी थे। यह उनकी ऋद्धि मुँह खिल उठा। वह जो हर बड़ी बातको अपनानेके का प्रभाव है, चकित होने की बात नहीं, इन्द्रजाल लिये लालायित था!
नहीं ! आजके दिन अगर चक्रवर्तीका सारा सेवकमासोपवासी महागज सुब्रत । पारणार्थ शायद सैनिक समुदाय भी निमंत्रित कर दिया जाय तब भी बलभद्रके घर जा रहे थे कि रास्तेमें अकृतने टोका- खीर-पात्र रीता नहीं हो सकता!' वखोंके प्रभावने उसे बतादिया था, कि यही महासाधु और तब उसने इस संयोगसे भर-पूर लाभ है, इन्हींकी चरण-शरणसे दुखियोंके दुख मिटते हैं,
उठाया! छोटे बड़े बनते हैं ! 'बाबा ! माँने आज खीर पकाई बलभद्रका सारा परिवार, गाँवका बच्चा-बच्चा है, तुम खीर खाकर जाना । वह कह गई है मुझसे- उसके घर निमंत्रित हुया! लोग बर्तन भर-भरकर आती ही होगी ठहरिये दयाकर कुछ देर !'
खीर अपने घर लेगए! योगीश्वरने देखा-आहारकी विधि नहीं है! ......"खुश, बहुत खुश और चकित ! वह चलने-बलनेको हुये कुछ बढ़े भी, कि अकृतने एक सिरेसे दूसरे सिरे तक प्रशंसा !! पाँव पकड़ लिये ! गिड़गिड़ाकर बोला-'जाने नहीं बलभद्र बोला-'बहिन, अकृतका अभाग्य अब दूंगा-बाबा ! खीर...१ बड़े लोगोंके खानेकी खीर साधु-चरणोंको छूकर सौभाग्यमें बदल गया है!'