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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
को छोड़ बैठे थे। आज भी ऐसे उदाहरणों का अभाव नहीं है । बिरले महापुरुष ही अपने आपको कुसंग के प्रभाव से पूर्णतया निर्लिप्त रख पाते हैं।
इसलिए बन्धुओ, जैसा कि भगवान ने कहा है-न तो साधु और न ही श्रावक, कभी परलोक पर अविश्वास करे और न अपनी साधना या तपस्या के लिए पश्चात्ताप करते हुए यह विचार करे कि-"मैं छला गया हूँ और त्यागतपस्या आदि किसी भी कार्य से कभी सिद्धि मिलने वाली नहीं है।" .
ऐसा विचार न करने वाला तथा पूर्वजन्म और पुनर्जन्म में विश्वास रखने वाला साधक ही पापों से बचता हुआ संवर के कल्याणकारी मार्ग पर बढ़ सकता है तथा अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है। .
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