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सच्ची गवाही किसकी ?
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो !
हमारा विषय 'दर्शन परिषह' चल रहा है । इस परिषह पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान ने आदेश दिया है कि कोई तपस्वी अपनी तपश्चर्या के फलस्वरूप अगर किसी प्रकार की सिद्धि प्राप्त नहीं कर पाए, तो भी मन में अश्रद्धा लाते हुए यह चिन्तन कभी न करे कि “मैंने इतने काल तक व्यर्थ तपस्या करके धोखा खाया है और परलोक में सुख-प्राप्ति होगी ऐसा मानकर शरीर को कष्ट दिया है । परलोक तो है ही नहीं अत: मेरा त्याग और तप निरर्थक गया।"
दिखाई न देने से किसी वस्तु का अस्तित्व नहीं मिटता संस्कृत के एक श्लोक में कहा गया है :
अतिदूरात् सानिध्यात् इन्द्रियाघात मनोऽनवस्थानात्। . कहते हैं कि चार कारणों से वस्तु दिखाई नहीं भी देती है, किन्तु वह लोप नहीं हो जाती यानी उसके विषय में यह कदापि नहीं कहा जा सकता कि उसका अस्तित्व है ही नहीं।
श्लोक के इस चरण में बताया गया है कि वस्तु के दिखाई न देने का प्रथम कारण हैं उसका बहुत दूर होना । यह कोई बड़ी गूढ़ या गंभीर बात नहीं है । सहज ही सबकी समझ में आ सकती है कि दूर होने पर हमें वस्तु नहीं दिखती। उदाहरणस्वरूप हिमालय पर्वत की चोटी क्या आपको दिखाई देती है ? नहीं; इसी प्रकार समुद्र के एक किनारे पर खड़े होकर भी आप उसका दूसरा किनारा नहीं देख पाते । तो क्या हिमालय की चोटी या समुद्र का दूसरा छोर है ही नहीं ? अवश्य है। कारण दिखाई न देने का केवल यही है कि वह आपकी दृष्टि से बहुत दूर हैं अतः दिखाई नहीं दे पाते ।
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