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का वर्षा जब कृषि सुखानी
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के मनुष्यों के लिए माननीय होते हैं । ऐसा जब नहीं किया जाता है तो वैरविरोध बढ़ता है तथा शासन भी खतरे में पड़ जाता है।
हमारे भारत को प्राचीनकाल में आर्यावर्त ही कहा जाता था क्योंकि यहाँ आर्य निवास करते थे। आर्य वे ही व्यक्ति कहे जाते हैं जो हेय कार्यों से परे रहकर धर्म का आचरण करें तथा शिष्ट एवं संस्कारशील बनें । ध्यान में रखने की बात है कि धर्मपरायण, शिष्ट एवं उत्तम संस्कारों से युक्त व्यक्ति ही अपने समाज एवं देश को गौरवान्वित कर सकते हैं, इसलिए समाज के नेताओं को
और राज्य के कर्णधारों को भी यही प्रयत्न करना चाहिए कि हमारे देश व समाज के व्यक्ति पुनः सच्चे आर्य बनें । इस प्रयास में दोनों का संगठित होकर कार्य करना आवश्यक है । अगर समाज के व्यक्ति राज्य शासन की अवहेलना करें और राजनीतिज्ञ नेता समाज की उपेक्षा करने लग जायँ तो समाज और देश दोनों ही समान रूप से अपयश के भागी बनेंगे तथा आर्यावर्त जैसी उत्तम उपाधि रसातल को चली जायेगी।
तो यह जो अधिवेशन हो रहा है, इसका उद्देश्य यही है कि अग्रणी लोग संगठित होकर ऐसा प्रयत्न करें, जिससे समाज का हर व्यक्ति सभ्य, सुसंस्कारी एवं धर्म-परायण बने । तभी समाज का और देश का कल्याण हो सकेगा। व्यक्तियों से समाज बनता है और समाज मिलकर राष्ट्र। अगर प्रत्येक समाज का प्रत्येक व्यक्ति विवेकी और संस्कारी बन जाय तो राष्ट्र या देश स्वयं ही उन्नत बन जायेगा।
इसलिए बन्धुओ, उन्नति के इच्छुक मुख्यमन्त्री को और आप जैसे समाज के कर्मठ व्यक्तियों को संगठित होकर बिखरी हुई शक्तियों को एकत्र करना है तथा मानव-मानव में जो भेद-भाव हो गया है उसका जड़ से उन्मूलन करना है । ऐसा तभी हो सकता है जबकि आप प्राणपण से इस कार्य में जुट जायँ। अगर अब भी आप जागरूक नहीं होंगे तो फिर कब यह कार्य हो सकेगा ?
भूखे भगति न होई गोपाला! आप जानते हैं कि पूर्व काल में लोगों की मनोवृत्ति धर्म-प्रधान थी। अतः उस समय भारतीय जीवन बड़ा सुखमय एवं शान्तिमय था । उस समय मनुष्यों के हृदयों में आज के समान अशान्ति, व्याकुलता एवं धन के लिए हाय-हाय नहीं थी। क्योंकि धर्म उनकी तृष्णा पर अंकुश रखता था तथा संतोष, शान्ति एवं संयमी जीवन बिताने की प्रेरणा दिया करता था। इसी कारण उस समय व्यक्ति का जीवन उच्च और पवित्र बना रहता था। लोग एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सहानुभूति एवं संवेदना रखते थे । परिवार के, समाज के और भिन्न-भिन्न गाँवों
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